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Showing posts from May, 2020

8 पौराणिक पात्र, जिन्हें अमृत का वरदान मिला है-8 mythological characters, who have got the blessing of nectar

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1. परशुराम (Parshuram) :  परशुराम   त्रेता युग  (रामायण काल) के एक मुनि थे। उन्हें  भगवान विष्णु  का छठा अवतार भी कहा जाता है। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि  विश्वामित्र  एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर  कैलाश गिरिश्रृंग  पर स्थित  भगवान शंकर  के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें  श्रीकृष्ण  का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु

माँ अन्नपूर्णा स्तोत्र -Maa Annapurna Stotra

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जगत जगदीश्वरी माँ जगदम्बे आशा पूर्ण करती रहो अन्नपूर्ण दाती हो तुम सदा भंडारे भारती रहो द्वारे तेरे आया सवाली कभी निराश जावे ना भगति शक्ति दे माँ अम्बे तेरे ही गुण गावे माँ तू है दाती दिला दी जाने, चिन्तपुरनी कहलाती हो चिंता दूर करो माँ मेरी, सब को सुख पौचाती हो तेरी माया का भरमाया, मै हु दास निम्न माँ शरण तेरी मैया मै आया, आशा पुरनी करना माँ ज्वाला हो तुम माँ जगदम्बे , उज्जवल मेरा भविष्य करो बदल दो दाती किस्मत मेरी, उलटे लेख भी सीधे करो तुम बिन कोई नहीं माँ मेरा, शरण तुम्हारी आया हु काम कोई भी सिद्ध ना होवे, कई यत्न कर हरा हु बरकत भरदो हाथ मै मेरे, किरपा इतनी करना माँ अन्नपूर्ण माँ जगदम्बे , भंडारे सदा ही भरना माँ मेरे परिवार की रक्षा करना, कर्ज ना कोई सर पर रहे एसी किरपा करो तुम दाती, वेय्पार मेरा भी बड़ता रहे.. दया तेरी जिस पर हो मैया कभी निराश जाए ना बिगड़े काम भी बन जाते है, शरण तेरी जो आये माँ रक्षक बन रक्षा करती, दास के संकट दूर करो शरण तेरी 'चमन' माँ आया, अन्नपूर्ण भंडारे

किस कारण से ब्रह्मा, विष्णु और महादेव को 6 महीने का लड़का बनाना पड़ा? अनुसुइया के तीन बेटों की कहानी!-For which reason Brahma, Vishnu and Mahadev had to make a 6-month-old boy? Story of the three sons of Anusuiya!

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सती अनुसूईया महर्षि अत्री की पत्नी थी। जो अपने पतिव्रता धर्म के कारण सुविख्यात थी। एक दिन देव ऋषि नारद जी  बारी-बारी से विष्णुजी, शिव जी और ब्रह्मा जी की अनुपस्थिति में विष्णु लोक, शिवलोक तथा ब्रह्मलोक पहुंचे। वहां जाकर उन्होंने लक्ष्मी जी, पार्वती जी और सावित्री जी के सामने अनुसुइया के पतिव्रत धर्म की बढ़ चढ़ के प्रशंसा की तथा कहाँ की समस्त सृष्टि में उससे बढ़ कर कोई पतिव्रता नहीं है। नारद जी की बाते सुनकर तीनो देवियाँ सोचने लगी की आखिर अनुसुइया के पतिव्रत धर्म में ऐसी क्या बात है जो उसकी चर्चा स्वर्गलोक तक हो रही है ? तीनो देवीयों को अनुसुइया से ईर्ष्या होने लगी। नारद जी के वहां से चले जाने के बाद सावित्री , लक्ष्मी तथा पार्वती एक जगह  इक्ट्ठी हुई तथा अनुसूईया के पतिव्रत धर्म को खंडित कराने के बारे में सोचने लगी। उन्होंने निश्चय किया की हम अपने पतियों को वहां भेज कर अनुसूईया का पतिव्रत धर्म खंडित कराएंगे। ब्रह्मा, विष्णु और शिव जब अपने अपने स्थान पर पहुँचे तो तीनों देवियों ने उनसे अनुसूईया का पतिव्रत धर्म खंडित कराने की जिद्द की। तीनों देवों ने बहुत समझाया कि यह पाप हमसे मत करवाओ। परंतु

श्री राम के अलावा ये 4 से भी हार गए थे रावण-Apart from Shri Rama, he was also defeated by 4 Ravan

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  बालि से रावण की हार एक बार रावण बालि से युद्ध करने के लिए पहुंच गया था। बालि उस समय पूजा कर रहा था। रावण बार-बार बालि को ललकार रहा था, जिससे बालि की पूजा में बाधा उत्पन्न हो रही थी। जब रावण नहीं माना तो बालि ने उसे अपनी बाजू में दबा कर चार समुद्रों की परिक्रमा की थी। बालि बहुत शक्तिशाली था और इतनी तेज गति से चलता था कि रोज सुबह-सुबह ही चारों समुद्रों की परिक्रमा कर लेता था। इस प्रकार परिक्रमा करने के बाद सूर्य को अर्घ्य अर्पित करता था। जब तक बालि ने परिक्रमा की और सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया तब तक रावण को अपने बाजू में दबाकर ही रखा था। रावण ने बहुत प्रयास किया, लेकिन वह बालि की गिरफ्त से आजाद नहीं हो पाया। पूजा के बाद बालि ने रावण को छोड़ दिया था। सहस्त्रबाहु अर्जुन से रावण की हार सहस्त्रबाहु अर्जुन के एक हजार हाथ थे और इसी वजह से उसका नाम सहस्त्रबाहु पड़ा था। जब रावण सहस्त्रबाहु से युद्ध करने पहुंचा तो सहस्त्रबाहु ने अपने हजार हाथों से नर्मदा नदी के बहाव को रोक दिया था। सहस्त्रबाहु ने नर्मदा का पानी इकट्ठा किया और पानी छोड़ दिया, जिससे रावण पूरी सेना के साथ ही नर्मदा में बह गया था।

भगवान गणेश को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाते?-Why not offer Tulsi to Lord Ganesha?

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धर्म ग्रंथो के अनुसार भगवान गणेश को भगवान  श्री कृष्ण का अवतार बताया गया है और भगवान श्री कृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के अवतार है। लेकिन जो तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है, इतनी प्रिय की भगवान विष्णु के ही एक रूप शालिग्राम का विवाह तक तुलसी से होता है वही तुलसी भगवान गणेश को अप्रिय है, इतनी अप्रिय की भगवान गणेश के पूजन में इसका प्रयोग वर्जित है।  पर ऐसा क्यों है इसके सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा है - एक बार श्री गणेश गंगा किनारे तप कर रहे थे। इसी कालावधि में धर्मात्मज की नवयौवना कन्या तुलसी ने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर प्रस्थान किया। देवी तुलसी सभी तीर्थस्थलों का भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर पंहुची। गंगा तट पर देवी तुलसी ने युवा तरुण गणेश जी को देखा जो तपस्या में विलीन थे। शास्त्रों के अनुसार तपस्या में विलीन गणेश जी रत्न जटित सिंहासन पर विराजमान थे। उनके समस्त अंगों पर चंदन लगा हुआ था। उनके गले में पारिजात पुष्पों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक हार पड़े थे। उनके कमर में अत्यन्त कोमल रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था। तुलसी श्री गणेश के रुप पर मोहित हो गई और उनके मन में गणेश स

क्या है शिव मंदिर में कछुए की प्रतिमा का महत्व?-What is the significance of turtle statue in Shiva temple?

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शिव मंदिर में शिवलिंग सहित हर देव मूर्ति या चिन्ह जीवन से जुड़े कुछ न कुछ संकेत जरूर देते हैं। बस जरूरत है इन देव मूर्तियों में छुपे संकेतों को समझने और शिवालय से लौटने पर भी उनको अपना मार्गदर्शक बनाने की, जिससे देव दर्शन सार्थक बन जाए। शिवालय में जाने पर मूर्तियों के क्रम में नंदी के बाद हम कछुए की मूर्ति के दर्शन करते हैं। यह कछुआ शिव की ओर बढ़ रहा होता है, न कि नंदी की ओर। यह कछुआ शिव की ओर ही क्यों सरकता है? जानिए इसमें छिपे संदेशों को-  जिस तरह नंदी हमारे शरीर को परोपकार, संयम और धर्म आचरण के लिए प्रेरित करने वाला माना गया है। ठीक उसी तरह शिव मंदिर में कछुआ मन को संयम, संतुलन और सही दिशा में गति सिखाने वाला माना गया है। कछुए के कवच की तरह हमारे मन को भी हमेशा शुद्ध और पवित्र कार्य करने के लिए ही मजबूत यानि दृढ़ संकल्पित बनाना चाहिए। मन को कर्म से दूर कर मारना नहीं, बल्कि हमेशा अच्छे कार्य करने के लिए जगाना चाहिए। खासतौर पर स्वार्थ से दूर होकर दूसरों की भलाई, दु:ख और पीड़ा को दूर करने के लिए तत्पर रखना चाहिए यानि मन की गति बनाए रखना जरूरी है। सरल शब्दों में मन स्वार्थ और शारीरिक सु

कैसे पैदा हुआ नारियल?-How was Coconut Born?

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हिन्दू धर्म में नारियल का विशेष महत्तव है।  नारियल के बिना कोई भी धार्मिक कार्यक्रम संपन्न नहीं होता है। नारियल से जुडी एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है जो जिसके अनुसार नारियल का इस धरती पर अवतरण ऋषि विश्वामित्र द्वारा किया गया था। आज हम आपको नारियल के जन्म से जुडी यही कहानी बता रहे है।   यह कहानी प्राचीन काल के एक राजा सत्यव्रत से जुड़ी है। सत्यव्रत एक प्रतापी राजा थे, जिनका ईश्वर में सम्पूर्ण विश्वास था। उनके पास सब कुछ था लेकिन उनके मन की एक इच्छा थी जिसे वे किसी भी रूप में पूरा करना चाहते थे। वे चाहते थे की वे किसी भी प्रकार से पृथ्वीलोक से स्वर्गलोक जा सकें। स्वर्गलोक की सुंदरता उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती थी, किंतु वहां कैसे जाना है, यह सत्यव्रत नहीं जानते थे। एक बार ऋषि विश्वामित्र  तपस्या करने के लिए अपने घर से काफी दूर निकल गए थे और लम्बे समय से वापस नहीं आए थे। उनकी अनुपस्थिति में क्षेत्र में सूखा पड़ा गया और उनका परिवार भूखा-प्यासा भटक रहा था। तब राजा सत्यव्रत ने उनके परिवार की सहायता की और उनकी देख-रेख की जिम्मेदारी ली। जब ऋषि विश्वामित्र वापस लौटे तो उन्हें परिवार वालों ने राजा

व्यावहारिक जीवन के दृष्टिकोण से शिव नंदी के इस मुद्रा के महत्व को जानें।-Know the importance of this mudra of Shiva Nandi from the perspective of practical life.

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नंदी का संदेश है कि जिस तरह वह भगवान शिव का वाहन है, ठीक उसी तरह हमारा शरीर आत्मा का वाहन है। जैसे नंदी की नजर शिव की ओर होती है, उसी तरह हमारी नजर भी आत्मा की ओर हो। इस बात का सरल शब्दों में मतलब है है कि हर व्यक्ति को अपने मानसिक, व्यावहारिक और वाणी के गुण-दोषों की परख करते रहना चाहिए। मन में हमेशा मंगल और कल्याण करने वाले देवता शिव की भांति दूसरों के हित, परोपकार और भलाई का भाव रखना चाहिए। नंदी का इशारा यही होता है कि शरीर का ध्यान आत्मा की ओर होने पर ही हर व्यक्ति चरित्र, आचरण और व्यवहार से पवित्र हो सकता है। इसे ही आम भाषा में मन का साफ होना कहते हैं। इससे शरीर भी स्वस्थ होता है और शरीर के निरोग रहने पर ही मन भी शांत, स्थिर और दृढ़ संकल्प से भरा होता है। इस तरह संतुलित शरीर और मन ही हर कार्य और लक्ष्य में सफलता के करीब ले जाता है।  इस तरह अब जब भी मंदिर में जाएं शिव के साथ नंदी की पूजा कर शिव के कल्याण भाव को मन में रखकर वापस आएं। इसे ही शिवतत्व को जीवन में उतारना कहा जाता है। 

क्यों भगवान विष्णु की नींद में शुभ कार्य रुक जाते हैं-Why the auspicious work stops in the sleep of Lord Vishnu

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हिन्दू धर्म में एकादशियों को अहम महत्व प्राप्त है। आमतौर पर लोग एकादशी को महज एक व्रत के रूप में ही देखते हैं लेकिन किसी एकादशी का महत्व इससे अधिक होता है। एकादशी का अर्थ, उससे जुड़ा इतिहास एवं विभिन्न मान्यताएं मिलकर इस दिन को एक त्यौहार का रूप प्रदान करती हैं। हिन्दू धर्म के मान्य कैलेंडर हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की 11वीं चंद्रमा तिथि को एकादशी का दिन माना जाता है तथा हर एक माह में दो एकादशियां होती हैं। यह एकादशी सभी के लिए काफी शुभ मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी का पूरा दिन ही शुभ मुहूर्त से बना होता है। अत: इस दिन किसी भी मंगल कार्य को करना शुभ माना गया है। लेकिन हरिशयनी एकादशी इन सभी एकादशियों से कुछ अलग है। यह एक ऐसी एकादशी है जिसके आने के बाद हिन्दू धर्म में सभी मंगल कार्यों पर रोक लग जाती है। लेकिन क्यों? हरिशयनी का महत्व भगवान विष्णु से जुड़ा है। इस शब्द में ‘हरि’ का संबंध विष्णुजी से है तथा ‘शयन’ का अर्थ है विश्राम करना या फिर निद्रा में जाना। एक मान्यतानुसार यह ऐसा दिन है जब भगवान विष्णु चार माह के लिए शयन अवस्था में चले जाते हैं। इन चार महीनों में भगवान व

कार्तिक मास का महत्व, दीप दान क्यों?-Importance of Kartik month, why do lamp donation?

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हिंदू धर्म के धर्म शास्त्रों में प्रत्येक ऋतु व मास का अपना विशेष महत्व बताया गया है। सामान्य रूप से तुला राशि पर सूर्यनारायण के आते ही कार्तिक मास प्रारंभ हो जाता है। कार्तिक का माहात्म्य पद्मपुराण तथा स्कंदपुराण में बहुत विस्तार से उपलब्ध है। कार्तिक मास में स्त्रियां ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके राधा-दामोदर की पूजा करती हैं। कलियुग में कार्तिक मास व ्रत को मोक्ष के साधन के रूप में बताया गया है। कार्तिक में पूरे माह ब्रह्म मुहूर्त में किसी नदी, तालाब, नहर या पोखर में स्नान कर भगवान की पूजा की जाती है। धर्म ग्रंथों में कार्तिक मास के बारे में वर्णित है कि यह मास स्नान, तप व व्रत के लिए सर्वोत्तम है। इस माह में दान, स्नान, तुलसी पूजन तथा नारायन पूजन का अत्यधिक महत्व है| कार्तिक माह की विशेषता का वर्णन स्कन्द पुराण में भी दिया गया है| स्कन्द पुराण में लिखा है कि सभी मासों में कार्तिक मास, देवताओं में विष्णु भगवान, तीर्थों में नारायण तीर्थ (बद्रीनारायण) शुभ हैं| कलियुग में जो इनकी पूजा करेगा वह पुण्यों को प्राप्त करेगा| पदम पुराण के अनुसार कार्तिक मास धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष देने वाला

क्या कारण था कि भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया?-What was the reason that Lord Vishnu took incarnation of Rama?

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पहला प्रसंग- जय-विजय को दिया था सनकादि मुनि ने श्राप एक बार सनकादि मुनि भगवान विष्णु के दर्शन करने वैकुंठ आए। उस समय वैकुंठ के द्वार पर जय-विजय नाम के दो द्वारपाल पहरा दे रहे थे। जब सनकादि मुनि द्वार से होकर जाने लगे तो जय-विजय ने हंसी उड़ाते हुए उन्हें बेंत अड़ाकर रोक लिया। क्रोधित होकर सनकादि मुनि ने उन्हें तीन जन्मों तक राक्षस योनी में जन्म लेने का श्राप दे दिया। क्षमा मांगने पर सनकादि मुनि ने कहा कि तीनों ही जन्म में तुम्हारा अंत स्वयं भगवान श्रीहरि करेंगे। इस प्रकार तीन जन्मों के बाद तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। पहले जन्म में जय-विजय ने हिरण्यकशिपु व हिरण्याक्ष के रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का तथा नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का वध कर दिया। दूसरे जन्म में जय-विजय ने रावण व कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया। इनका वध करने के लिए भगवान विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा। तीसरे जन्म में जय-विजय शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्मे। इस जन्म में भगवान श्रीकृष्ण ने इनका वध किया। दूसरा प्रसंग- मनु-शतरूपा को भगवान विष्णु ने दिया था वरदान मनु और उनकी पत्नी शतरूप

हम करवाचौथ पर छलनी से चंद्रमा को क्यों देखते हैं?-Why do we see the moon with a sieve on Karvachauth?

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करवाचौथ व्रत का नियम है कि विवाहित स्त्रियों को सोलह ऋंगार करके गौरी, गणेश और भगवान शिव सहित करवा माता की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में करवा माता की कथा सुनना भी आवश्यक है। व्रत के नियम के अनुसार व्रती को पूरे दिन निर्जल व्रत रखना होता है। शाम में चांद को देखने के बाद पति के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत खोला जाता है। किसी कारणवश पति के पास नहीं होने पर पति की तस्वीर को देखकर और उनका ध्यान करके भी व्रत खोला जाता है। लेकिन इस पूरे व्रत में छलनी का विशेष महत्व है। अमीर हो या गरीब हर वर्ग की महिलाएं इस व्रत में छलनी जरूर खरीदती हैं। शाम ढलने पर इसी छलनी की ओट से चांद देखकर व्रत पूरा होता है। करवाचौथ व्रत में छलनी का महत्व इसलिए है क्योंकि छलनी के कारण ही एक पतिव्रता स्त्री का व्रत टूटा था। करवाचौथ की कथा के अनुसार भावुकता में आकर भाईयों ने अपनी बहन को छल से चांद की जगह छलनी की ओट से दिया दिखाकर भोजन करवा दिया। झूठा चांद देखकर भोजन करने के कारण पतिव्रता स्त्री को अपना पति खोना पड़ा। इसके बाद पूरे वर्ष उस स्त्री ने चतुर्थी तिथि का व्रत रखा। पुनः करवाचौथ को छलनी से वास्तविक चांद देखने के बाद पत

रविवार को तुलसी क्यों नहीं तोड़नी चाहिए?-Why shouldn't Tulsi be broken on Sunday?

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  भारतीय संस्कृति में किसी भी कार्य को करने से पूर्व उस कार्य को कब और कैसे करना चाहिए, यह विचार किया जाता है, जिसे लोग मुहूर्त कहते हैं। मुहूर्त में काल के अवयवों के रूप में तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण आदि को महत्व दिया जाता है। इनमें से वार सर्वाधिक सुगम एवं सरल अवयव है, इसलिए इसे हर व्यक्ति अपने उपयोग में अपनी तरह लेता है और उसी अनुसार कार्य करने लगता है। सामान्यतया सात वारों में रवि, मंगल को क्रूर एवं शनि को अशुभ माना जाता है। स्थापना एवं निर्माणादि वास्तु के कार्यों में शनि को शुभ माना जाता है। भारतीय परम्परा में किसी वृक्ष एवं पौधे को अपने उपयोग के लिए लगाना, काटना या उसके पत्ते लेना आदि इन सभी कार्यो को मुहूर्त में ही करने की लोक परम्परा थी और कहीं-कहीं अभी भी है। वैद्य भी मुहूर्त के अनुसार ही औषधीय वनस्पति को निकालते थे। मुहूर्त की जटिलता एवं मुहूर्त के सबके लिए सुगम व सुलभ न होने के कारण आज भी वार का ही उपयोग सामान्य लोग करते हैं। मुहूर्त के प्रधान अवयव तिथि-वार आदि सभी विष्णुरूप माने गए हैं। ‘तिथिर्विष्णुस्तथा वारं नक्षत्रं विष्णुरेव च। योगश्च करणं विष्णु: र्सव विष्णुमयं

माता मनसा देवी जी के आज के भव्य दिव्ये दर्शन 31/05/2020

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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ या देवी सर्व भूतेषु शान्ति रुपेण संस्थिता नम: तस्यै नम: तस्यै नम: तस्यै नमो नम:   ||卐||~~~||  💐💐 ||~~~||卐||

शिव पार्वती के पुत्र दानव अंधक की कहानी-Story of demon Andhak, son of Shiva Parvati

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एक बार भगवान शिव और माता पार्वती घूमते हुए काशी पहुंच गए। वहां पर भगवान शिव अपना मुंह पूर्व दिशा की ओर करके बैठे थे। उसी समय पार्वती ने पीछे से आकर अपने हाथों से भगवान शिव की आंखों को बंद कर दिया। ऐसा करने पर उस पल के लिए पूरे संसार में अंधेरा छा गया। दुनिया को बचाने के लिए शिव ने अपनी तीसरी आँख खोल दी, जिससे संसार में पुनः रोशनी बहाल हो गई। लेकिन उसकी गर्मी से पार्वती को पसीना आ गया। उन पसीने की बूंदों से एक बालक प्रकट हुआ। उस बालक का मुंह बहुत बड़ा था और भंयकर था। उस बालक को देखकर माता पार्वती ने भगवान शिव से उसकी उत्पत्ति के बारे में पूछा। भगवान शिव ने पसीने से उत्पन्न होने के कारण उसे अपना पुत्र बताया। अंधकार में उत्पन्न होने की वजह से उसका नाम अंधक रखा गया। कुछ समय बाद दैत्य हिरण्याक्ष के पुत्र प्राप्ति का वर मागंने पर भगवान शिव ने अंधक को उसे पुत्र रूप में प्रदान कर दिया। अंधक असुरों के बीच ही पला बढ़ा और आगे चलकर असुरों का राजा बना। अंधक ने तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान मांग लिया था की वो तभी मरे जब वो यौन लालसा से अपनी माँ की और देखे। अंधक ने सोचा था की ऐसा कभी नहीं होगा क्योक

बेलपत्र तोड़ने और शिवलिंग पर चढ़ाने का सही तरीका क्या है?

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सावन का महीना आते ही श्रद्धालु महादेव शंकर को प्रसन्न करने की कोशिश में जुट जाते हैं. शिवलिंग पर गंगाजल के साथ-साथ बेलपत्र भी चढ़ाने का विधान है. शि‍व को बेलपत्र अर्पित करते वक्त और इसे तोड़ते समय कुछ खास नियमों का पालन करना जरूरी होता है. बेलपत्र को संस्कृत में 'बिल्वपत्र' कहा जाता है. यह भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है. ऐसी मान्यता है कि बेलपत्र और जल से भगवान शंकर का मस्तिष्क शीतल रहता है. पूजा में इनका प्रयोग करने से वे बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं. हमारे धर्मशास्त्रों में ऐसे निर्देश दिए गए हैं, जिससे धर्म का पालन करते हुए पूरी तरह  प्रकृति की रक्षा भी हो सके . यही वजह है कि देवी-देवताओं को अर्पित किए जाने वाले फूल और पत्र को तोड़ने से जुड़े कुछ नियम बनाए गए हैं. बेलपत्र तोड़ने के नियम: 1. चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथ‍ियों को, सं‍क्रांति के समय और सोमवार को बेलपत्र न तोड़ें. 2. बेलपत्र भगवान शंकर को बहुत प्रिय है, इसलिए इन तिथ‍ियों या वार से पहले तोड़ा गया पत्र चढ़ाना चाहिए. 3. शास्त्रों में कहा गया है कि अगर नया बेलपत्र न मिल सके, तो किसी दूसरे के चढ़ाए हुए

हम तिलक क्यों लगाते है?-Why do we apply Tilak?

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भारतीय संस्कृति में किसी भी पूजा, पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान आदि का शुभारंभ श्रीगणेश पूजा से आरंभ होता है। कोई भी पूजा हो या अनुष्ठान बिना तिलक धारण किए आरंभ नहीं होती। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है। इसलिए यहां चंदन, रोली, कुंकुम, सिंदूर तथा भस्म तिलक लगाया जाता है। पूजा और भक्ति का एक प्रमुख अंग तिलक है। तिलक मस्तक पर दोनों भौंहों के बीच नासिका (नाक) के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर लगाए जाते हैं जो हमारे चिंतन-मनन का स्थान है- यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसे आज्ञा-चक्र भी कहते हैं। इसे शिवनेत्र अर्थात कल्याणकारी विचारों का केन्द्र भी कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने इसे पीनियल ग्रंथि नाम दिया है। प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि प्रकाश से इसका गहरा संबंध है। ध्यान-धारणा के माध्यम से साधक में जो प्रकाश उत्पन्न होता है इसे आज्ञाचक्र कहते हैं। हमारे ऋषियों को यह तथ्य भली- भांति पता था, अत: उन्होंने तिलक करने की प्रथा को पूजा-उपासना के साथ-साथ हर शुभ कार्य से जोड़कर इसे धर्म-कर्म का एक अभिन्न अंग बना दिया, ताकि नियमित रूप से उस स्थान के स