हम तिलक क्यों लगाते है?-Why do we apply Tilak?



भारतीय संस्कृति में किसी भी पूजा, पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान आदि का शुभारंभ श्रीगणेश पूजा से आरंभ होता है। कोई भी पूजा हो या अनुष्ठान बिना तिलक धारण किए आरंभ नहीं होती।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है। इसलिए यहां चंदन, रोली, कुंकुम, सिंदूर तथा भस्म तिलक लगाया जाता है। पूजा और भक्ति का एक प्रमुख अंग तिलक है।

तिलक मस्तक पर दोनों भौंहों के बीच नासिका (नाक) के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर लगाए जाते हैं जो हमारे चिंतन-मनन का स्थान है- यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसे आज्ञा-चक्र भी कहते हैं। इसे शिवनेत्र अर्थात कल्याणकारी विचारों का केन्द्र भी कहा जाता है।

वैज्ञानिकों ने इसे पीनियल ग्रंथि नाम दिया है। प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि प्रकाश से इसका गहरा संबंध है। ध्यान-धारणा के माध्यम से साधक में जो प्रकाश उत्पन्न होता है इसे आज्ञाचक्र कहते हैं।

हमारे ऋषियों को यह तथ्य भली- भांति पता था, अत: उन्होंने तिलक करने की प्रथा को पूजा-उपासना के साथ-साथ हर शुभ कार्य से जोड़कर इसे धर्म-कर्म का एक अभिन्न अंग बना दिया, ताकि नियमित रूप से उस स्थान के स्पर्श से उसे तिलक लगाने का लाभ मिलता रहे।

तिलक और रेड ऑक्साइड

मांग के सिंदूर में उपस्थित लाल तत्त्व पारे का रेड ऑक्साइड होता है, जो कि शरीर के लिए लाभदायक है। मांग का सिंदूर एवं शुद्ध चंदन के प्रयोग से मुंह को झुर्रीरहित बनाता है। माग में सिंदूर लगाने से मस्तिष्क-संबंधी क्रियाएं नियंत्रित, संतुलित तथा नियमित रहती हैं एवं मस्तिष्कीय विकार नष्ट होते हैं लेकिन वर्तमान में जो केमिकल्स की बिंदिया( मांग का सिंदूर) चल पड़ी है वह लाभ के बजाय हानि करती है। ललाट पर नियमित रूप से तिलक करते रहने से मस्तिष्क के रसायनों सेराटोनिन व बीटा एंडोर्फिन का स्त्राव संतुलित रहता है, जिससे मनोभावों में सुधार आकर उदासी दूर होती है, सिरदर्द नहीं होता और बुद्धि तीव्र होती है।

तिलक लगाने की विधि

अमूमन चंदन, कुंकुम, हल्दी, यज्ञ की धूप, गौ-धूलि, तुलसी या पीपल की जड़ की मिट्टी आदि का तिलक लगाया जाता है। चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं। श्वेत और रक्त चंदन भक्ति के प्रतीक हैं।

कुंकुम में हल्दी का संयोजन होने से त्वचा को शुद्ध रखने में सहायता मिलती है और मस्तिष्क के स्नायुओं का संयोजन प्राकृतिक रूप में हो जाता है। संक्रामक कीटाणुओं को नष्ट करने में शुद्ध मिट्टी का तिलक महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। यज्ञ की भस्म का तिलक करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। ज्योतिषशास्त्र अनुसार, तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है।

वार के अनुसार तिलक

सोमवार: इस दिन के स्वामी ग्रह चन्द्रमा हैं। चन्द्रमा मन का कारक ग्रह होता है इसे अनुकूल बनाए रखने के लिए श्रीखंड चंदन अथवा दही का तिलक करें। इससे मस्तिष्क शीतल और शांत रहता है।

मंगलवार: इस दिन मंगल ग्रह के प्रभाव में होता है। इस ग्रह का प्रतिनिधि रंग लाल है। उर्जा और कार्यक्षमता में वृ्दि्ध के लिए मंगलवार के दिन रक्त चंदन अथवा सिंदूर का तिलक लगाना शुभ फलदायी रहता है।

बुधवार: इस दिन बुध ग्रह के प्रभाव में होता है। इसके स्वामी गणेश जी हैं। गणेश जी को सिंदूर का तिलक प्रिय है। इसलिए बुधवार के दिन सिंदूर लगाना चाहिए। इससे बौद्धिक एवं मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है।

गुरूवार: इस दिन के स्वामी धन के कारक ग्रह बृहस्पति हैं। गुरू को पीला रंग प्रिय है। प्रत्येक गुरूवार केसर, हल्दी, का तिलक लगाने से गुरू के शुभ प्रभाव में वृद्धि होती है। मन में सात्विक भाव बढ़ता है और आर्थिक समस्याओं में कमी आती है।

शुक्रवार: इस दिन के स्वामी शुक्र ग्रह हैं। शुक्रवार के दिन सिंदूर अथवा रक्त चंदन का नियमित तिलक दांपत्य जीवन के तनाव को दूर करने में सहायक होता। भौतिक सुख-सुविधों में वृद्धि के लिए भी यह लाभप्रद रहता है।

शनिवार: इस दिन के स्वामी ग्रह शनि महाराज हैं। इन्हें अनुकूल बनाए रखने के लिए शनिवार के दिन रक्त चंदन (लाल चंदन) का लेप करना चाहिए।

रविवार: इस दिन के स्वामी ग्रहों के राज सूर्य हैं। रविवार के दिन श्रीखंड चंदन अथवा रक्त चंदन लगाया जा सकता है।

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