हम करवाचौथ पर छलनी से चंद्रमा को क्यों देखते हैं?-Why do we see the moon with a sieve on Karvachauth?



करवाचौथ व्रत का नियम है कि विवाहित स्त्रियों को सोलह ऋंगार करके गौरी, गणेश और भगवान शिव सहित करवा माता की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में करवा माता की कथा सुनना भी आवश्यक है। व्रत के नियम के अनुसार व्रती को पूरे दिन निर्जल व्रत रखना होता है। शाम में चांद को देखने के बाद पति के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत खोला जाता है। किसी कारणवश पति के पास नहीं होने पर पति की तस्वीर को देखकर और उनका ध्यान करके भी व्रत खोला जाता है। लेकिन इस पूरे व्रत में छलनी का विशेष महत्व है। अमीर हो या गरीब हर वर्ग की महिलाएं इस व्रत में छलनी जरूर खरीदती हैं। शाम ढलने पर इसी छलनी की ओट से चांद देखकर व्रत पूरा होता है। करवाचौथ व्रत में छलनी का महत्व इसलिए है क्योंकि छलनी के कारण ही एक पतिव्रता स्त्री का व्रत टूटा था। करवाचौथ की कथा के अनुसार भावुकता में आकर भाईयों ने अपनी बहन को छल से चांद की जगह छलनी की ओट से दिया दिखाकर भोजन करवा दिया। झूठा चांद देखकर भोजन करने के कारण पतिव्रता स्त्री को अपना पति खोना पड़ा। इसके बाद पूरे वर्ष उस स्त्री ने चतुर्थी तिथि का व्रत रखा। पुनः करवाचौथ को छलनी से वास्तविक चांद देखने के बाद पतिव्रता स्त्री को पति प्राप्त हुआ।� छलनी का एक अर्थ छल करने वाला होता है। इसलिए महिलाएं स्वयं अपने हाथ में छलनी लेकर चांद देखती है ताकि कोई अन्य उसे झूठा चांद दिखाकर व्रत भंग न करे। करवा चौथ में छलनी लेकर चांद को देखना यह भी सीखाता है कि पतिव्रत का पालन करते हुए किसी प्रकार का छल उसे प्रतिव्रत से डिगा न सके। करवा चौथ की जितनी भी कथाएं हैं उन सभी कथाओं में भाई द्वारा छलनी से झूठे चांद को दिखाने का वर्णन मिलता है। उस घटना को याद करने के लिए भी महिलाएं करवाचौथ का व्रत छलनी से चांद देखकर ही खोलती हैं।

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