क्यों भगवान विष्णु की नींद में शुभ कार्य रुक जाते हैं-Why the auspicious work stops in the sleep of Lord Vishnu


हिन्दू धर्म में एकादशियों को अहम महत्व प्राप्त है। आमतौर पर लोग एकादशी को महज एक व्रत के रूप में ही देखते हैं लेकिन किसी एकादशी का महत्व इससे अधिक होता है। एकादशी का अर्थ, उससे जुड़ा इतिहास एवं विभिन्न मान्यताएं मिलकर इस दिन को एक त्यौहार का रूप प्रदान करती हैं।

हिन्दू धर्म के मान्य कैलेंडर हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की 11वीं चंद्रमा तिथि को एकादशी का दिन माना जाता है तथा हर एक माह में दो एकादशियां होती हैं। यह एकादशी सभी के लिए काफी शुभ मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी का पूरा दिन ही शुभ मुहूर्त से बना होता है। अत: इस दिन किसी भी मंगल कार्य को करना शुभ माना गया है।

लेकिन हरिशयनी एकादशी इन सभी एकादशियों से कुछ अलग है। यह एक ऐसी एकादशी है जिसके आने के बाद हिन्दू धर्म में सभी मंगल कार्यों पर रोक लग जाती है। लेकिन क्यों?

हरिशयनी का महत्व भगवान विष्णु से जुड़ा है। इस शब्द में ‘हरि’ का संबंध विष्णुजी से है तथा ‘शयन’ का अर्थ है विश्राम करना या फिर निद्रा में जाना। एक मान्यतानुसार यह ऐसा दिन है जब भगवान विष्णु चार माह के लिए शयन अवस्था में चले जाते हैं।

इन चार महीनों में भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं इसलिए इस दौरान हिन्दू धर्म में विवाह तथा अन्य मंगल कार्यों को रोक दिया जाता है। विष्णुजी के निंद्रा काल में जाने के कारण किसी भी शुभ कार्य को महत्व नहीं मिल पाता इसलिए लोग मंगल कार्यों के लिए चार माह के लिए रोक लगाना ही सही मानते हैं।

हरिशयनी एकादशी को देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है। यह एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में आती है। इसे ‘पद्मनाभा’ एकादशी भी कहा जाता है। भारत में वर्षा ऋतु के आरंभ होने के आसपास ही इस एकादशी की तिथि आती है। 

कहते हैं एक बार नारद मुनि ने भगवान ब्रह्मा से हरिशयनी एकादशी का महत्व जानने के लिए विनती की तो ब्रह्मा जी ने बताया कि यह खास प्रकार की एकादशी सतयुग के राजा चक्रवर्ती सम्राट के राज्य से जुड़ी है। यह कहानी ऐसी है जो इस एकादशी को महान बनाती है।

यह तब की बात है जब राजा के राज्य में प्रजा बहुत सुख और आनन्द से रहती थी। लेकिन एक बार राज्य पर कुदरत का कहर उमड़ पड़ा। तकरीबन तीन वर्ष तक राज्य में वर्षा की एक बूंद ना पड़ी, सके परिणामस्वरूप चारों ओर भयंकर अकाल पड़ गया।

व्याकुल प्रजा अपनी जान की दुहाई करती हुई राजा के महल में पहुंची और राजा से मदद की गुहार करने लगी। यूं तो राजा भी पहले से ही अकाल पड़ने की इस चिंता में डूबे हुए थे लेकिन प्रजा के आने पर वे और अधिक परेशान हो गए।

वे समझ नहीं पा रहे थे कि अब क्या करें। कुदरत की इस मार के सामने वे कर भी क्या सकते थे। उन्होंने वर्षा कराने के लिए ना जाने कितने धर्म पक्ष के यज्ञ किए, विभिन्न हवन पिण्डदान किए और स्वयं ही व्रत भी रखे लेकिन कोई परिणाम ना मिला। प्रजा की वे मदद करें भी तो कैसे समझ नहीं आ रहा था, लेकिन तभी उन्होंने फैसला किया कि वे पास के जंगल में जाएंगे और वहीं अपनी समस्या का हल खोजेंगे।

मुनि ने उन्हें आशीर्वाद देकर उनके आने का कारण पूछा तो राजा बोले, “हे महात्मन! सब प्रकार से धर्म का पालन करते हुए भी मैं अपने राज्य में दुर्भिक्ष का दृश्य देख रहा हूं। मैं इसका कारण नहीं जानता। आख़िर क्यों ऐसा हो रहा है, कृपया आप इसका समाधान कर मेरा संशय दूर कीजिए।

राजा की विनती सुनकर ऋषि बोले, “हे राजन! आप चिंतित मत होइए। क्या आप नहीं जानते कि यह सतयुग सब युगों में क्षेष्ठ और उत्तम माना गया है? यह एक ऐसा युग है जिसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भारी दण्ड मिलता है, और शायद आप इस बात से अनजान हैं कि एक ऐसा ही पाप आपके राज्य में ही हो रहा है।“

राजा कुछ समझ ना पाए और ऋषि की बात को विस्तार से जानने की विनती करने लगे। ऋषि आगे बोले, “सतयुग में लोग ब्रह्माजी की उपासना करते हैं। इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता है। इसमें ब्राह्मणों के अतिरिक्त अन्य किसी जाति को तप करने का अधिकार नहीं है लेकिन आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। यही कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है।“

अब राजा को वर्षा ना होने का कारण समझ में आने लगा। ऋषि बताने लगे कि यदि उस शूद्र की मृत्यु हो जाए तो राज्य में पड़ा अकाल हरियाली में बदल सकता है लेकिन राजा के राज्य में किसी को भी मृत्यु दंड देने का प्रावधान नहीं था। राजा व्याकुल होकर ऋषि से बोले के वे उस शूद्र को नहीं मार सकते, कृपया वो कोई और उपाय बताएं।

राजा की चिंता को समझते हुए ऋषि बोले, “राजन्, यदि आप ऐसा नहीं कर सकते तो आपको एक व्रत रखना होगा। आप आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे सारा जगत पद्मा एकादशी या हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जानता है, उसका विधिपूर्वक व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।“

ऋषि से मिला उपाय जानकर राजा वापस अपनी सेना के साथ राज्य में लौटे और सलाह के अनुसार पूरे विधि-विधान से चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलाधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।

इस कथा को ही आधार मानते हुए हिन्दू धर्म में भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं। परिवार में खुशी, धन का लाभ हो तथा किसी भी प्रकार का दुख उन्हें छू ना सके इस भावना से लोग हरिशयनी एकादशी का व्रत रखते हैं।

वैसे तो हिन्दू धर्म में सभी एकादशियों को भगवान विष्णु की पूजा-आराधना की जाती है, परंतु इस खास एकादशी के लिए भगवान का शयन प्रारम्भ होने के कारण उनकी विशेष विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस एकादशी पर कोई भूल-चूक ना हो इस बात का खास ख्याल रखा जाता है।

इस दिन उपवास करके भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार सहित पूजन करके, उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा, पद्म सुशोभित कर उन्हें पीत वस्त्रों व पीले दुपट्टे से सजाया जाता है। इसके साथ ही पंचामृत से स्नान करवाकर, तत्पश्चात भगवान की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा कर आरती उतारी जाती है।

भक्तिभावना सहित लोग भगवान को पान, सुपारी अर्पित करने के बाद एक ‘विष्णु मंत्र’ द्वारा उनकी स्तुति भी करते हैं। “सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।“

इस मंत्र में भक्त भगवान विष्णु से हृदय से प्रार्थना करता है और कहता है कि हे जगन्नाथजी! आपके शयन काल में जाने से पूरा संसार ही सो जाता है और आपके जाग जाने से ही विश्व जाग्रत होता है। कृपया अपनी अनुपस्थिति में भी अपना आशीर्वाद अपने भक्तों पर बनाए रखें।

भक्ति के रस में डूबे लोग प्रार्थना के बाद इच्छानुसार ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। लोगों का मानना है कि हरिशयनी एकादशी की रात भगवान के मंदिर में ही शयन करना चाहिए तथा भगवान का भजन व स्तुति करनी चाहिए। स्वयं सोने से पूर्व भगवान को भी शयन करा देना चाहिए।

इस दिन अनेक परिवारों में महिलाएं पारिवारिक परम्परानुसार देवों को सुलाती हैं। लोगों का मानना है कि जब तक भगवान निद्रा में है तब तक हमें कोई गलत आहार नहीं लेना चाहिए। इसलिए इस दौरान लोग खास विशेष रूप से अपने दैनिक आहार को भी बदल लेते हैं

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