गोकर्णनाथ मंदिर: जहां रावण द्वारा शिवलिंग रखा गया था- Gokarnanath Temple: where Shivalinga was kept by Ravana
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में छोटी काशी के नाम से विख्यात गोला गोकर्णनाथ में लंकापति रावण द्वारा रखे शिवलिंग के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। जिला मुयालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित मंदिर में भक्तगण अपनी मुरादें लेकर आते हैं और भगवान आशुतोष के दरबार मे अपनी हाजिरी लगाकर पूजा अर्चना करते हैं।
बाबा की इस नगरी में वैसे तो साल भर मेले जैसा माहौल बना रहता है पर श्रावण व चैत्र के महीने में यह नगरी शिव भक्तों के तप, दर्शन व धार्मिक जयकारों से शिवमय हो जाती है। सावन माह में शिवभक्तों की अपार भीड़ शिव मन्दिर में उमड़ती है। धार्मिक ग्रन्थों में सावन के सोमवारों का विशेष महत्व होने के चलते यहां भक्तों की इतनी अधिक भीड़ उमड़़ती है कि स्थानीय प्रशासन की सारी सुरक्षा व्यवस्था चरमरा जाती है।
पौराणिक मान्यताओं व धार्मिक अभिलेखों के अनुसार लंका पति रावण ने घोर तपस्या के बाद भगवान शिव को प्रसन्न किया और उन्हें अपने साथ लंका चलकर वहां वास करने की प्रार्थना की, इस पर भोलेनाथ ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर उसके साथ लंका चलने को राजी हो गए और साथ ही यह शर्त भी रखी कि यदि वह उनके शिवलिंग को रास्ते मे कहीं भी रख देगा तो वह वहीं स्थापित हो जाएंगे और वहां से नहीं हटेंगे।
किवदंतियों के अनुसार शिव जी को लेकर लंकापति रावण गोलिहार नामक इस स्थान से होते हुए आकाश मार्ग से निकल रहा था उस समय यहां पर बेल वृक्षों का विशाल वन था। शिव जी को यह स्थान अति सुन्दर और मनोहारी लगा। शिवजी ने अपनी मंशानुसार रावण को लघु शंका करने के लिए मजबूर कर दिया। रावण ने वहीं कुछ दूरी पर ग्वाले जो जानवरों को चरा रहे थे, में से एक ग्वाला जिसका नाम गोकरनाथ था को बुलाया और कहा कि कांवर में स्थित इस शिविंलग को जमीन पर मत रखना, मैं लघुशंका करके अभी आ रहा हूं। शिवजी ने रावण के पेट में गंगा यमुना स्थापित कर दी जिससे वह काफी समय तक लघुशंका करता रहा । इस बीच शिव जी ने शिवलिंग का भार बढ़ाना शुरु किया और इतना भार बढ़ाया कि वह ग्वाला कांवर को संभाल नहीं सका और उसने कांवर जमीन पर रख दी। जब लंकेश लघुशंका से निवृत्त होकर वापस आया तब तक भोलेनाथ वहां स्थापित हो चुके थे। तमाम मन्नतों और प्रार्थनाओं के बावजूद जब शिवजी अपने वचन के अनुसार उसके साथ चलने को राजी नहीं हुए तो रावण ने शिवलिंग को पुन: उठाने के लिए अपना सारा तामसिक व शारीरिक बल लगा डाला लेकिन शिवलिंग वहां से टस से मस नहीं हुआ।
क्रोधित रावण ने उस शिवलिंग को अपने अंगूठे से दबा दिया जिससे शिवलिंग पर उसके अंगूठे का गड्ढ़ा सा बन गया। रावण का यह अंगूठा आज भी इस शिवलिंग पर मौजूद है। इस अंगूठे को स्थानीय लोग गाली (गड्ढा) भी कहते हैं और ऐसी मान्यता है कि यदि कोई भक्त श्रद्धापूर्वक इस अंगूठे से बनी गाली को भरना चाहे तो वह गाली भर जाती है ।
शिवलिंग के स्थापित हो जाने से नाराज रावण उस ग्वाले गोकरननाथ की ओर उसे मार डालने के लिए दौड़ा जिससे खौफजदा होकर भागे ग्वाले ने इस स्थल से कुछ दूरी पर बने एक कुंए में छलांग लगा दी और उसमें गिरकर मर गया। अपने द्वारा रची गई लीला मे गोकरननाथ के भी पात्र होने से शिवजी ने उसे यह वरदान दिया कि अब से मेरी पूजा अर्चना के साथ-साथ तुम्हारी पूजा भी होगी। तब से वह ग्वाला भूतनाथ के नाम से विख्यात हुआ और यह नगरी ग्वाला गोकरननाथ के नाम से जानी जाने लगी।
बिगड़ते-बिगड़ते इसका नाम ग्वाला से गोला हो गया और अब यह नगर गोला गोकर्णनाथ एवं छोटी काशी के नाम से विख्यात है। वह कुंआ जिसमें वह ग्वाला गोकरननाथ रावण से अपनी जान बचाने के लिए कूदा था, आज भी वहीं मौजूद है । श्रावण मास के तीसरे सोमवार को यहां भूतनाथ का मेला लगता है एवं दूर दराज के तमाम जगहों से भक्त आकर यहां "भूतनाथ की हू" का जयघोष करते हुए पूजा-अर्चना करते हैं और शिवभक्त हरिद्वार, फर्रुखाबाद, इलाहाबाद आदि जगहों से गंगाजल भरकर पैदल यात्रा करते हुए गोला के भोला को कांवर चढ़ाते हैं।
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