आखिर क्यों है बिल्वपत्र शिव जी को प्रिय, बेलपत्र तोड़ने और चढ़ाने के नियम




ये तो आप सभी जानते हैं कि बिल्वपत्र शिवजी को अत्यंत प्रिय हैं। सिर्फ बिलपत्र चढ़ाने से ही शिव जी पूर्ण पूजन का फल साधक को दे देते हैं।

विष्णुप्रिया लक्ष्मीजी के वक्ष:स्थल से प्रादुर्भूत हुआ बिल्ववृक्ष
लक्ष्म्या: स्तनत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम्।
बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।
अर्थात्–बिल्ववृक्ष महालक्ष्मीजी के वक्ष:स्थल से उत्पन्न हुआ और महादेवजी का प्रिय है, मैं एक बिल्वपत्र शिवार्पण करता हूँ।



वृहद् धर्मपुराण में बिल्ववृक्ष की उत्पत्ति सम्बधी कथा–इसके अनुसार बिल्ववृक्ष की उत्पत्ति लक्ष्मीजी द्वारा स्तन काटकर चढ़ाने से हुई। लक्ष्मीजी ने भगवान विष्णु को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए शिवजी का घोर आराधन व तप किया। अंत में लक्ष्मीजी ‘ॐ नम: शिवाय’ इस पंचाक्षर मन्त्र से एक सहस्त्र कमलपुष्प द्वारा शिवजी का पूजन कर रहीं थीं तब शिवजी ने उनकी परीक्षा करने के लिए एक कमलपुष्प चुरा लिया। भगवान विष्णु ने जब एक सहस्त्र पुष्पों से शिवजी की अर्चना की थी, उस समय भी भगवान शिवजी ने एक कमल चुरा लिया था।
लक्ष्मीजी ने एक कमलपुष्प कम होने पर अपना बायां वक्ष:स्थल काटकर शिवजी पर चढ़ा दिया क्योंकि स्तन की उपमा कमल से की जाती है। जब लक्ष्मीजी अपना दायां वक्ष:स्थल भी काटने को उद्यत हुईं तब शिवजी प्रकट हो गए और लक्ष्मीजी से बोले–’तुम ऐसा मत करो, तुम समुद्र-तनया हो।’
भगवान शिव आदि शल्यचिकित्सक हैं, उन्होंने गणेशजी को हाथी का और दक्षप्रजापति को बकरे का मुख लगाया था। अत: शिवकृपा से लक्ष्मीजी का बायां स्तन ज्यों-का-त्यों हो गया। शिवजी ने लक्ष्मीजी को वर देते हुए कहा–’समुद्र-तनये ! तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। भगवान विष्णु तुम्हारा वरण करेंगे।’ लक्ष्मीजी ने कटे हुए स्तन को पृथ्वी में गाड़ दिया जिससे एक वृक्ष उत्पन्न हुआ। जिसके पत्तों में तीन दल हैं व गोल फल लगता है। बिल्वफल को ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी न पहचान सके। यह वृक्ष व इसका फल ब्रह्माजी की सृष्टि से परे है। वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया ‘अक्षय तृतीया’ को बिल्ववृक्ष की उत्पत्ति हुई।
भगवान शिव ने प्रसन्न होकर लक्ष्मीजी से कहा–’बिल्ववृक्ष तुम्हारी भक्ति का प्रतीक होगा। यह वृक्ष मुझे व लक्ष्मीजी को अत्यन्त प्रिय होगा। हम दोनों की बिल्ववृक्ष से की गयी पूजा मुक्ता, प्रवाल, मूंगा, स्वर्ण, चांदी आदि रत्नों से की गयी पूजा से श्रेष्ठ मानी जाएगी। जैसे गंगाजल मुझको प्रिय है, उसी प्रकार बिल्वपत्र और बिल्वफल द्वारा की गयी मेरी पूजा कमल के समान मुझे प्रिय होगी। बिना बिल्वपत्र के मैं कोई भी वस्तु ग्रहण नहीं करुंगा।’
मणिमुक्त्ता प्रवालैस्तु रत्नैरप्यर्चनंकृतम्।
नगृहणामि बिना देवि बिल्वपत्रैर्वरानने।।
(लिंगपुराण)
हर हर महादेव ।।


बेलपत्र तोड़ने के नियम:
1. चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथ‍ियों को, सं‍क्रांति के समय और सोमवार को बेलपत्र न तोड़ें.
2. बेलपत्र भगवान शंकर को बहुत प्रिय है, इसलिए इन तिथ‍ियों या वार से पहले तोड़ा गया पत्र चढ़ाना चाहिए.
3. शास्त्रों में कहा गया है कि अगर नया बेलपत्र न मिल सके, तो किसी दूसरे के चढ़ाए हुए बेलपत्र को भी धोकर कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है.
अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि क्वचित्।। (स्कंदपुराण)
4. टहनी से चुन-चुनकर सिर्फ बेलपत्र ही तोड़ना चाहिए, कभी भी पूरी टहनी नहीं तोड़ना चाहिए. पत्र इतनी सावधानी से तोड़ना चाहिए कि वृक्ष को कोई नुकसान न पहुंचे.
5. बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए.

श‍िवलिंग पर कैसे चढ़ाएं बेलपत्र:
1. महादेव को बेलपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए, यानी पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहना चाहिए.
2. बेलपत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए.
3. बेलपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं. ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं.
4. अगर बेलपत्र उपलब्ध न हो, तो बेल के वृक्ष के दर्शन ही कर लेना चाहिए. उससे भी पाप-ताप नष्ट हो जाते हैं.
5. श‍िवलिंग पर दूसरे के चढ़ाए बेलपत्र की उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए.

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