जानिए दो देवियो की कथा. ( मनसा देवी, पंचकूला और मनसा देवी, हरिद्वार मंदिर की कथा. )



 माता मनसा देवी, पंचकूला 

माता मनसा देवी मंदिर एक शक्तिपीठ है  मान्यता है कि जब माता पार्वती अपने पिता हिमालय के राजा दक्ष के घर अश्वमेध यज्ञ में बिना बुलाए चली गई, तो किसी ने उनका सत्कार नहीं किया और यज्ञ में शिवजी का भाग भी नहीं निकाला, तो आत्म सम्मान के लिए मां ने अपने आपको यज्ञ की अग्नि में होम कर दिया। जिसका पता चलते ही शिवजी यज्ञ स्थान पर पहुंचकर सती का दग्ध शरीर लेकर तांडव नृत्य करते हुए देश-देशातंर में भटकने लगे। भगवान शिव का उग्र रूप देखकर ब्रंादि देवताओं को चिंता हुई, तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्त्र से लक्ष्यभेद कर सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। जिसके बाद विभिन्न स्थानों पर सती के शरीर के अंग जहां-जहां गिरे वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हुई और शिव ने कहा कि इन स्थानों पर भगवती शिव की भक्ति भाव से आराधना करने पर कुछ भी दुलर्भ नहीं होगा। पंचकूला शिवालिक गिरिमालाओं पर देवी के मस्तिष्क का अग्र भाग गिरने से मनसा देवी शक्तिपीठ देश के लाखों भक्तों के लिए पूजा स्थल बन गए हैं।




माता मनसा देवी, हरिद्वार
माता मनसा देवी, हरिद्वार
मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिक जी हैं। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है, प्रसिद्ध मंदिर एक शक्तिपीठ पर हरिद्वार में स्थापित है। इन्हें शिव की मानस पुत्री माना जाता है परंतु कई पुरातन धार्मिक ग्रंथों में इनका जन्म कश्यप के मस्तक से हुआ हैं, ऐसा भी बताया गया है। कुछ ग्रंथों में लिखा है कि वासुकि नाग द्वारा बहन की इच्छा करने पर शिव नें उन्हें इसी कन्या का भेंट दिया और वासुकि इस कन्या के तेज को न सह सका और नागलोक में जाकर पोषण के लिये तपस्वी हलाहल को दे दिया। इसी मनसा नामक कन्या की रक्षा के लिये हलाहल नें प्राण त्यागा।



इसलिए हम  आप को ये बताना चाहते है कि पंचकूला और हरिद्वार में बसी दोनों देवी अलग अलग देवी है. पंचकूला में महादेव  कि पूर्ण पत्नी सती के अग्र गिरने से देवी मनसा देवी प्रगट हुई और दूसरी और हरिद्वार में महादेव जी ने अपने  मन से मनसा देवी को  प्रगट किया !

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