माँ ज्वाला देवी जी के भगत गोरखनाथ जी: माँ ज्वाला देवी शक्तिपीठ और गोरख डिब्बी-Bhagat Gorakhnath of Mother Jwala Devi Ji: Mother Jwala Devi Shaktipeeth and Gorakh Dibbi



मां ज्वाला
ज्वाला देवी का मंदिर भी के 51 शक्तिपीठों में से एक है जो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा हुआ है । शक्तिपीठ वे जगह है जहा माता सती के अंग गिरे थे। शास्त्रों के अनुसार ज्वाला देवी में सती की जिह्वा (जीभ) गिरी थी। मान्यता है कि सभी शक्तिपीठों में देवी भगवान् शिव के साथ हमेशा निवास करती हैं। शक्तिपीठ में माता की आराधना करने से माता जल्दी प्रसन्न होती है। ज्वालामुखी मंदिर को ज्योता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढ़ी हुई है।

ज्वाला रूप में माता विराजमान
ज्वालादेवी मंदिर में सदियों से बिना तेल बाती के प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालाएं जल रही हैं। नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला माता जो चांदी के दीए के बीच स्थित है उसे महाकाली कहते हैं। अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, चण्डी, हिंगलाज, विध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी देवी ज्वाला देवी मंदिर में निवास करती हैं।

कथा
प्राचीन काल में गोरखनाथ मां के अनन्य भक्त थे जो मां की दिल से सेवा करते थे | एक बार गोरखनाथ को भूख लगी तब उसने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं। मां ने कहे अनुसार आग जलाकर पानी गर्म किया और गोरखनाथ का इंतज़ार करने लगी पर गोरखनाथ अभी तक लौट कर नहीं आए। मां आज भी ज्वाला जलाकर अपने भक्त का इन्तजार कर रही है। ऐसा माना जाता है जब कलियुग ख़त्म होकर फिर से सतयुग आएगा तब गोरखनाथ लौटकर मां के पास आएंगे। तब तक यह यहां जोत इसी तरह जलती रहेगी। इस जोत को न ही घी और न ही तैल की जरुरत होती है।

चमत्कारी गोरख डिब्बी
ज्वाला देवी शक्तिपीठ में माता की ज्वाला के अलावा एक अन्य चमत्कार देखने को मिलता है। यह गोरखनाथ का मंदिर भी कहलाता है। मंदिर परिसर के पास ही एक जगह 'गोरख डिब्बी' है। देखने पर लगता है इस कुण्ड में गर्म पानी खौलता हुआ प्रतीत होता जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है।

मां का चमत्कार देख खुली अकबर की आंखें
अकबर के समय में ध्यानुभक्त मां ज्योतावाली का परम् भक्त था जिसे मां में परम् आस्था थी। एक बार वो अपने गांव से ज्योता वाली के दर्शन के लिए भक्तो का कारवा लेकर निकला। रास्ते में मुग़ल सेना ने उन्हें पकड़ लिया और अकबर के सामने पेश किया। अकबर ने ध्यानूभक्त से पुछा की वो सब कहा जा रहे है | इस परध्यानूभक्त ने ज्योतावाली के दर्शन करने की बात कही। अकबर ने कहा तेरी मां में क्या शक्ति है? ध्यानुभक्त ने कहा, वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है।
इस बात पर अकबर ने ध्यानूभक्त के घोड़े का सिर कलम कर दिया और व्यंग में कहा की तेरी मां सच्ची है तो इसे फिर से जीवित करके दिखाए। ध्यानुभक्त ने मां से विनती की मां अब आप ही लाज़ रख सकती हो। मां के आशीष से घोड़े का सिर फिर से जुड़ गया और वो हिन हिनाने लगा। अकबर और उसकी सेना को अपनी आंखों पर यकीन न हुआ पर यही सत्य था। अकबर ने मां से माफ़ी मांगी और उनके दरबार में सोने का छत्र चढाने पंहुचा, पर उसके दिल में अंहकार था, जैसे ही उसने यह छत्र मां के सिर पर चढ़ाने की कोशिश की। छत्र मां से कुछ दूरी पर गिर गया और उसमें लगा सोना भी दूसरी धातु में बदल गया, आज भी यह छत्र इस मंदिर में मौजुद है लेकिन कोई यह नहीं पता लगा पाया कि यह छत्र किसी धातु में परिवर्तन हो गया।

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