Siddhidatri Durga Temple, Varanasi-सिद्धिदात्री दुर्गा मंदिर, वाराणसी
नवरात्रि का नौवां दिन देवी दुर्गा के नौवें रूप की पूजा के लिए समर्पित है जो देवी सिद्धिदात्री हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। देवी पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने केवल उनके आशीर्वाद से सभी सिद्धियों को प्राप्त किया। उनके आधे शरीर ने देवी का रूप धारण किया। तो, उन्हें अर्धनारीश्वर के रूप में भी जाना जाता है।
देवी सिद्धिदात्री के चार हाथ हैं। उसका वाहन सिंह है। वह कमल के फूल पर बैठती है और उसके निचले दाहिने हाथ में एक चक्र, उसके ऊपरी दाहिने हाथ में एक गदा / क्लब, उसके निचले बाएँ हाथ में एक शंख और उसके ऊपरी बाएँ हाथ में एक कमल का फूल है।
एक मान्यता के अनुसार, देवी दुर्गा के इस रूप की पूजा करने से भक्त सभी प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाते हैं और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
देवी सिद्धिदात्री के चार हाथ हैं। उसका वाहन सिंह है। वह कमल के फूल पर बैठती है और उसके निचले दाहिने हाथ में एक चक्र, उसके ऊपरी दाहिने हाथ में एक गदा / क्लब, उसके निचले बाएँ हाथ में एक शंख और उसके ऊपरी बाएँ हाथ में एक कमल का फूल है।
एक मान्यता के अनुसार, देवी दुर्गा के इस रूप की पूजा करने से भक्त सभी प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाते हैं और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ समय: -
मंदिर सुबह 07.00 बजे से रात 10 बजे तक और शाम 04.00 बजे तक पूजा के लिए खुला रहता है। से 08.00 बजे अपराह्न तक। नवरात्रि-प्रातः ०५.०० बजे से सुबह १०.०० बजे और शाम ०४.०० बजे से। रात 10.00 बजे।
मंदिर सुबह 07.00 बजे से रात 10 बजे तक और शाम 04.00 बजे तक पूजा के लिए खुला रहता है। से 08.00 बजे अपराह्न तक। नवरात्रि-प्रातः ०५.०० बजे से सुबह १०.०० बजे और शाम ०४.०० बजे से। रात 10.00 बजे।
मंदिर का स्थान
सिद्धिदात्री दुर्गा मंदिर K.60 / 29, वाराणसी में सिद्धमाता गली में स्थित है।
सिद्धिदात्री दुर्गा मंदिर K.60 / 29, वाराणसी में सिद्धमाता गली में स्थित है।
स्थानीय परिवहन श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए उपलब्ध है।
“सिद्धगंधर्वयक्षादौर सुरैरमरै रवि।
सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायनी॥“
श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा औरआराधना की जाती है।
सिद्धिदात्रीकी कृपा से मनुष्य सभी प्रकार की सिद्धिया प्राप्त कर मोक्ष पाने मे सफल होता है। मार्कण्डेयपुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्वये आठ सिद्धियाँ बतलायी गयी है। भगवती
सिद्धिदात्री उपरोक्त संपूर्ण सिद्धियाँ अपने उपासको को प्रदान करती है। माँ दुर्गा के इस अंतिम स्वरूप की आराधना के साथ ही नवरात्र के अनुष्ठान का समापन हो जाता है।
इस दिन को रामनवमी भी कहा जाता है और शारदीय नवरात्रि के अगले दिन अर्थात दसवें दिन को रावण पर राम की विजय के रूप में मनाया जाता है। दशम् तिथि को बुराई पर अच्छाकई की विजय का प्रतीक माना जाने वाला त्योतहार विजया दशमी यानि दशहरा मनाया जाता है। इस दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाये जाते हैं।
सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायनी॥“
श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा औरआराधना की जाती है।
सिद्धिदात्रीकी कृपा से मनुष्य सभी प्रकार की सिद्धिया प्राप्त कर मोक्ष पाने मे सफल होता है। मार्कण्डेयपुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्वये आठ सिद्धियाँ बतलायी गयी है। भगवती
सिद्धिदात्री उपरोक्त संपूर्ण सिद्धियाँ अपने उपासको को प्रदान करती है। माँ दुर्गा के इस अंतिम स्वरूप की आराधना के साथ ही नवरात्र के अनुष्ठान का समापन हो जाता है।
इस दिन को रामनवमी भी कहा जाता है और शारदीय नवरात्रि के अगले दिन अर्थात दसवें दिन को रावण पर राम की विजय के रूप में मनाया जाता है। दशम् तिथि को बुराई पर अच्छाकई की विजय का प्रतीक माना जाने वाला त्योतहार विजया दशमी यानि दशहरा मनाया जाता है। इस दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के पुतले जलाये जाते हैं।
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