Mangla Gauri Vrat मगला गौरी व्रत कथा

Mangla Gauri Vrat

कुण्डिन नगर में धर्मपाल नामक एक धनी सेठ रहता था। उसकी पत्नी सती, साध्वी एवं पतिव्रता थी। परंतु उनके कोई पुत्र नहीं था। सब प्रकार के सुखों से समृद्ध होते हुए भी वे दम्पति बड़े दुःखी रहा करते थे। उनके यहां एक जटा रुद्राक्ष मालाधारी भिक्षुक प्रतिदिन आया करते थे। सेठानी ने सोचा कि भिक्षुक को कुछ धन आदि दें, सम्भव है इसी पुण्य से मुझे पुत्र प्राप्त हो जाए। ऐसा विचारकर पति की सम्पŸिा से सेठानी ने भिक्षुक की झोली में छिपाकर सोना डाल दिया। परंतु इसका परिणाम उलटा ही हुआ भिक्षुक अपरिग्रह व्रती थे, उन्होंने अपना व्रत भंग जानकर सेठ-सेठानी को संतान हीनता का शाप दे डाला। फिर बहुत अनुनय-विनय करने से उन्हें गौरी की कृपा से एक अल्पायु पुत्र प्राप्त हुआ। उसे गणेश ने सोलह वें वर्ष में सर्प दंश का शाप दे दिया था। परंतु उस बालक का विवाह ऐसी कन्या से हुआ, जिसकी माता ने मंगलागौरी-व्रत किया था। उस व्रत के प्रभाव से उत्पन्न कन्या विधवा नहीं हो सकती थी। अतः वह बालक शतायु हो गया। न तो उसे सांप ही डंस सका और ही यम दूत सोलहवें वर्ष में उसके प्राण ले जा सके। इसलिए यह व्रत प्रत्येक नवविवाहिता को करना चाहिए।

मंगला गौरी व्रत श्रावण मास में पडने वाले सभी मंगलवार को रखा जाता है. श्रावण मास में आने वाले सभी व्रत-उपवास व्यक्ति के सुख- सौभाग्य में वृ्द्धि करते है. सौभाग्य से जुडे होने के कारण इस व्रत को विवाहित महिलाएं और नवविवाहित महिलाएं करती है. इस उपवास को करने का उद्धेश्य अपने पति व संतान के लम्बें व सुखी जीवन की कामना करना है.

जिन महिलाओं की कुण्डली में वैवाहिक सुख में कमी या विवाह के बाद अलगाव जैसे अशुभ योग बन रहे हों, उन महिलाओं को भी यह व्रत विशेष रुप से करना चाहिए. इस व्रत के विषय में यह मान्यता है, कि यह उपवास नियम अनुसार किया जायें तो वैवाहिक सुख को बढाता है, तथा दांम्पत्य जीवन को सुखमय बनाये रखने में सहयोग करता है.

मंगला गौरी व्रत पूजन सामग्री:

1. फल, फूलों की मालाएं, लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लोंग, जीरा, धनिया (सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए), साडी सहित सोलह श्रंगार की 16 वस्तुएं, 16 चूडियां इसके अतिरिक्त पांच प्रकार के सूखे मेवे 16 बार. सात प्रकार के धान्य (गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) 16 बार.

मंगला गौरी व्रत कैसे करें

इस व्रत को करने वाली महिलाओं को श्रावण मास के प्रथम मंगलवार के दिन इन व्रतों का संकल्प सहित प्रारम्भ करना चाहिए. श्रावण मास के प्रथम मंगलवार की सुबह, स्नान आदि से निर्वत होने के बाद, मंगला गौरी की मूर्ति या फोटो को लाल रंग के कपडे से लिपेट कर, लकडी की चौकी पर रखा जाता है. इसके बाद गेंहूं के आटे से एक दीया बनाया जाता है, इस दीये में 16-16 तार कि चार बतियां कपडे की बनाकर रखी जाती है.

मंगला गौरी विधि

  1. मंगला गौरी उपवास रखने के लिये सुबह स्नान आदि कर व्रत का प्रारम्भ किया जाता हैं.

  2. एक चौकी पर सफेद लाल कपडा बिछाना चाहियें.

  3. सफेद कपडे पर चावल से नौ ग्रह बनाते है, तथा लाल कपडे पर षोडश माताएं गेंहूं से बनाते है.

  4. चौकी के एक तरफ चावल और फूल रखकर गणेश जी की स्थापना की जाती है.

  5. दूसरी और गेंहूं रख कर कलश स्थापित करते हैं.

  6. कलश में जल रखते है.

  7. आटे से चौमुखी दीपक बनाकर कपडे से बनी 16-16 तार कि चार बतियां जलाई जाती है.

  8. सबसे पहले श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है.

  9. पूजन में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लोंग, पान,चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढाते हैं.

  10. इसके पश्चात कलश का पूजन भी श्री गणेश जी की पूजा के समान ही किया जाता है.

  11. फिर नौ ग्रहों तथा सोलह माताओं की पूजा की जाती है. चढाई गई सभी सामग्री ब्राह्माण को दे दी जाती है.

  12. मंगला गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी व काजल लगाते है. श्रंगार की सोलह वस्तुओं से माता को सजाया जाता हैं.

  13. सोलह प्रकार के फूल- पत्ते माला चढाते है, फिर मेवे, सुपारी, लौग, मेंहदी, शीशा, कंघी व चूडियां चढाते है.

  14. अंत में मंगला गौरी व्रत की कथा सुनी जाती हैं.

  15. कथा सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को सोलह लड्डु देती हैं. इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती हैं. अंतिम व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विर्सिजित कर दिया जाता हैं.

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