मां कुष्मांडा देवी प्राचीन व भव्य मंदिर, कानपुर-Maa Kushmanda Devi ancient and grand temple, Kanpur
कानपुर शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर घाटमपुर ब्लाक में मां कुष्मांडा देवी का करीब 1000 वर्ष पुराना मंदिर हैl मां कुष्मांडा देवी इस प्राचीन व भव्य मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में है। यहां मां कुष्मांडा एक पिंडी के स्वरूप में लेटी हैं, जिससे लगातर पानी रिसता रहता हैl माना जाता है कि मां की पूजा-अर्चना के पश्चात प्रतिमा से जल लेकर ग्रहण करने से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है। इस जल को नेत्रों में लगाने से सारे नेत्र रोग दूर होते हैं। आज तक वैज्ञानिक भी इस रहस्य का पता नहीं लगा पाए कि ये जल कहां से आता है।
नवरात्रों में मां के मंदिर में मेला लगता है। माता के मंदिर कोई पंड़ित पूजा नहीं करवाता। यहां नवरात्रे हो या अन्य दिन सिर्फ माली ही पूजा-अर्चना करते हैं।मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त यहां माता को चुनरी, ध्वजा, नारियल और घंटा चढ़ाने के साथ ही भीगे चने अर्पण करते हैं।
कहा जाता है कि यहां पहले घना जंगल था। इसी गांव का कुड़हा नामक ग्वाला गाएं चराने जाता था। शाम के समय जब वह दूध निकालने जाता तो गाय एक बूंद भी दूध नहीं देती। ग्वाले ने इस बात की निगरानी की। रात में ग्वाले को मां ने स्वप्न में दर्शन दिए। वह गाय को लेकर गया तभी एक स्थान पर गाय के आंचल से दूध की धारा निकलने लगी। ग्वाले ने उस स्थान की खुदवाई करवाई। वहां मां कूष्मांडा देवी की पिंडी निकली। गांव वालों ने उसी स्थान पर मां की पिंडी स्थापित कर दी अौर उसमें से निकलने वाले जल को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने लगे। चरवाहे कुड़हा के नाम पर मां कूष्मांडा का एक नाम कुड़हा देवी भी है। स्थानीय लोग मां को इसी नाम से पुकारते हैं।
कहा जाता है कि वर्तमान मंदिर का निर्माण 1890 में कसबे के चंदीदीन भुर्जी ने कराया था। सितंबर 1988 से मंदिर में मां कूष्मांडा की अखंड ज्योति निरंतर प्रज्वलित हो रही है। यहां रिसने वाले जल के ग्रहण से सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। सूर्योदय से पूर्व नहा कर 6 माह तक इस जल का प्रयोग किया जाए तो उसकी बीमारी शत प्रतिशत ठीक हो जाएगी। कहा जाता है कि इसके लिए बहुत नियम की जरूरत होती हैl
मंदिर के समीप ही दो तालाब बने हुए हैं। यह तालाब कभी नहीं सुखते हैं। भक्त एक तालाब में स्नान करने के पश्चात दूसरे कुंड से जल लेकर माता को अर्पित करते हैं। नवरात्र की चतुर्थी पर माता कूष्मांडा देवी के मंदिर परिसर में दीपदान महोत्सव काफी सुंदर होता है। दीपदान करने के लिए आस-पास के गांव के लोग आते हैं।
कैसे पहुंचे
मां कूष्मांडा देवी के मंदिर में बस और कानपुर-बांदा रेल लाइन से घाटमपुर स्टेशन उतरकर पहुंचा जा सकता है। मंदिर कानपुर-सागर राजमार्ग के किनारे स्थित है। वहां पहुंचने के लिए बहुत सारे साधन उपलब्ध हो जाते हैं।
मां कूष्मांडा देवी के मंदिर में बस और कानपुर-बांदा रेल लाइन से घाटमपुर स्टेशन उतरकर पहुंचा जा सकता है। मंदिर कानपुर-सागर राजमार्ग के किनारे स्थित है। वहां पहुंचने के लिए बहुत सारे साधन उपलब्ध हो जाते हैं।
”सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में॥“
श्री दुर्गाका चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा कीउपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं।
इनकी आराधनासे मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। माँ कुष्माण्डा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है। इनकी पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में॥“
श्री दुर्गाका चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा कीउपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं।
इनकी आराधनासे मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। माँ कुष्माण्डा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है। इनकी पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं।
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