History of vaidyanath jyotirlinga वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास
बैद्यनाथ धाम को बारहवां शिव ज्योतिर्लिंग भी कहते हैं, जो 51 शक्ति पीठों में प्रमुख है. यहां भगवान शिव की लिंग प्रतिष्ठित है. जुलाई-अगस्त (सावन के महीने में) भारत के विभिन्न स्थानों से 70 से 80 लाख श्रद्धालु सुल्तानगंज स्थित गंगा नदी से पवित्र जल ले कर 108 किमी के टेढ़े-मेढ़े रास्ते की पैदल यात्रा कर शिव जी पर अर्पित करते हैं.
‘शिव पुराण’ के अनुसार, बैद्यनाथ धाम के प्रतिष्ठित होने के पीछे भी लंबी कथा है. कहते हैं, एक बार रावण ने अपनी तपस्या से शिव जी को काफी प्रसन्न किया. खुश होकर शिव जी ने रावण से उसकी इच्छा पूछी तो रावण ने कहा कि मैं अपनी लंका नगरी में आपका शिवलिंग स्थापित करना चाहता हूं.
शिव जी ने काफी सोच-विचार करने के बाद रावण की इच्छा को मानते हुए कहा कि मेरी एक ही शर्त है-रास्ते में उसे कहीं रखना मत, वरना मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा. रावण के शिवलिंग ले जाने की कोशिश से देवलोक में खलबली मच गई, तभी भगवान विष्णु ब्राह्मण का रूप धारण कर रावण के पास पहुंचे. रावण को अचानक लघुशंका लगी तो उसने जल्दी से ब्राह्मण को शिवलिंग सौंप दिया.
मौका देखते ही ब्राह्मन रूपी भगवान विष्णु ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और वहां से गायब हो गए. बाद में रावण ने शिवलिंग को हिलाने की बहुत कोशिश की, पर वह टस से मस न हुई. अंत में, निराश होकर रावण को उसी स्थान पर शिवलिंग की पूजा करनी पड़ी.
इस मंदिर के बारे में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं, जैसे मंदिर के स्वर्ण कलश को चोरी करने की कोशिश करने वाला अंधा हो जाता है. मंदिर से थोड़ी दूर पर शिवगंगा है, जिसमें सात अक्षय कुण्ड हैं. कहते हैं कि उनकी गहराई की थाह नहीं है और वे पाताल तक जाते हैं.
यहां शिवरात्रि के दिन भी काफी श्रद्धालु देखे जा सकते हैं.
बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी व्रत रखते हैं. शाम को शंकरजी की बारात निकलती है, उसमें बाराती भूत-प्रेत होते हैं. अलग-अलग वेषभूषा में सजे बारातियों और नंदी का नाच देखते ही बनता है. शिवरात्रि को कुंआरी लड़कियां अच्छा जीवनसाथी पाने के लिए व्रत रखती हैं, ताकि उन्हें शिव जी जैसा ही पति मिले. बैद्यनाथ धाम ट्रेन या बस से जाया जा सकता है.
‘शिव पुराण’ के अनुसार, बैद्यनाथ धाम के प्रतिष्ठित होने के पीछे भी लंबी कथा है. कहते हैं, एक बार रावण ने अपनी तपस्या से शिव जी को काफी प्रसन्न किया. खुश होकर शिव जी ने रावण से उसकी इच्छा पूछी तो रावण ने कहा कि मैं अपनी लंका नगरी में आपका शिवलिंग स्थापित करना चाहता हूं.
शिव जी ने काफी सोच-विचार करने के बाद रावण की इच्छा को मानते हुए कहा कि मेरी एक ही शर्त है-रास्ते में उसे कहीं रखना मत, वरना मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा. रावण के शिवलिंग ले जाने की कोशिश से देवलोक में खलबली मच गई, तभी भगवान विष्णु ब्राह्मण का रूप धारण कर रावण के पास पहुंचे. रावण को अचानक लघुशंका लगी तो उसने जल्दी से ब्राह्मण को शिवलिंग सौंप दिया.
मौका देखते ही ब्राह्मन रूपी भगवान विष्णु ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और वहां से गायब हो गए. बाद में रावण ने शिवलिंग को हिलाने की बहुत कोशिश की, पर वह टस से मस न हुई. अंत में, निराश होकर रावण को उसी स्थान पर शिवलिंग की पूजा करनी पड़ी.
शिवलिंग से जुड़ी कथा
पश्चात्ताप से भरा रावण, प्रतिदिन शिवलिंग की पूजा गंगा जल अर्पित कर किया करता था. कहा जाता है, बैजू नामक आदिवासी ने शिवलिंग की काफी पूजा की, उसकी असीम भक्ति से उस स्थान को बैजूनाथ या बैद्यनाथ कहा जाने लगा. कुछ समय बाद इस स्थल की प्रसिद्धि बैद्यनाथ धाम के रूप में हुई. देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शुमार है.
‘शिव पुराण’ के अनुसार, भगवान शंकर समस्त प्राणियों के कल्याण हेतु विभिन्न तीर्थ स्थलों में लिंग रूप में वास करते हैं. बैद्यनाथ शिवलिंग की महत्ता मनोकामना लिंग के रूप में भी है.
भारत का यही एकमात्र ऐसा स्थल है, जहां ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ साथ-साथ हैं. दोनों ही अगल-बगल प्रतिष्ठित हैं. मंदिर का मुख पूर्व की तरफ है और यह समतल पत्थर से बना है, जहां पिरामिड जैसा दिखने वाला टावर भी है. मंदिर के उत्तरी बरामदे के पूर्व में बड़ा सा कुंड है, जहां से चढ़ाया गया गंगाजल और दूध प्रवाहित होता है, जिसे काफी पवित्र माना गया है.
‘शिव पुराण’ के अनुसार, भगवान शंकर समस्त प्राणियों के कल्याण हेतु विभिन्न तीर्थ स्थलों में लिंग रूप में वास करते हैं. बैद्यनाथ शिवलिंग की महत्ता मनोकामना लिंग के रूप में भी है.
भारत का यही एकमात्र ऐसा स्थल है, जहां ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ साथ-साथ हैं. दोनों ही अगल-बगल प्रतिष्ठित हैं. मंदिर का मुख पूर्व की तरफ है और यह समतल पत्थर से बना है, जहां पिरामिड जैसा दिखने वाला टावर भी है. मंदिर के उत्तरी बरामदे के पूर्व में बड़ा सा कुंड है, जहां से चढ़ाया गया गंगाजल और दूध प्रवाहित होता है, जिसे काफी पवित्र माना गया है.
मंदिर के परिसर में 22 मंदिर
बैद्यनाथ मंदिर के परिसर में कुल 22 मंदिर हैं. कहते हैं, बैद्यनाथ धाम में स्वयं भगवान शंकर मुक्ति देते हैं और जो भी इनके दर्शन करने आते हैं, वे सभी मुक्त हो जाते हैं. बैद्यनाथ महादेव की प्रसिद्धि ‘रावणोर बैद्यनाथ’ के रूप में भी है. बैद्यनाथ धाम को ‘हार्दपीठ’ भी कहते हैं, जिसकी मान्यता शक्तिपीठ के रूप में है.
जिस जगह पर सती का खंडित हृदय कट कर गिरा, वहीं बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है और वह स्थल हार्दपीठ कहलाता है. लोक मान्यता है कि सावन माह में साक्षात भगवान शंकर मां पार्वती संग बाबा बैद्यनाथ के रूप में देवघर में विराजमान रहते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
मंदिर का दरवाजा सुबह 4 बजे खुलता है और 3-4 बजे शाम को बंद हो जाता है. शाम 6 बजे प्रार्थना शुरू होती है. अंतिम प्रार्थना का समय रात 9 बजे तय है लेकिन विशेष त्योहारों के मौके पर पूजा की अवधि बढ़ा दी जाती है.
सावन में सुल्तानगंज से लेकर देवघर तक का रास्ता भक्तों की आवाजाही और भोले बैद्यनाथ की जय, बोलबम आदि के नारों से गुंजायमान रहता है. इस शुभ अवसर पर एक महीने तक चलने वाला विशाल श्रावणी मेला भी लगता है. यहां इतनी भीड़ होती है कि किसी अनहोनी से बचने के लिए सुरक्षा और सुविधा का पुख्ता इंतजाम करने के लिए सरकार भी पहले से ही मुस्तैद रहती है.
जिस जगह पर सती का खंडित हृदय कट कर गिरा, वहीं बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है और वह स्थल हार्दपीठ कहलाता है. लोक मान्यता है कि सावन माह में साक्षात भगवान शंकर मां पार्वती संग बाबा बैद्यनाथ के रूप में देवघर में विराजमान रहते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
मंदिर का दरवाजा सुबह 4 बजे खुलता है और 3-4 बजे शाम को बंद हो जाता है. शाम 6 बजे प्रार्थना शुरू होती है. अंतिम प्रार्थना का समय रात 9 बजे तय है लेकिन विशेष त्योहारों के मौके पर पूजा की अवधि बढ़ा दी जाती है.
सावन में सुल्तानगंज से लेकर देवघर तक का रास्ता भक्तों की आवाजाही और भोले बैद्यनाथ की जय, बोलबम आदि के नारों से गुंजायमान रहता है. इस शुभ अवसर पर एक महीने तक चलने वाला विशाल श्रावणी मेला भी लगता है. यहां इतनी भीड़ होती है कि किसी अनहोनी से बचने के लिए सुरक्षा और सुविधा का पुख्ता इंतजाम करने के लिए सरकार भी पहले से ही मुस्तैद रहती है.
मंदिर से जुड़ी कई किंवदंतियां
इस मंदिर के बारे में कई किंवदंतियां प्रचलित हैं, जैसे मंदिर के स्वर्ण कलश को चोरी करने की कोशिश करने वाला अंधा हो जाता है. मंदिर से थोड़ी दूर पर शिवगंगा है, जिसमें सात अक्षय कुण्ड हैं. कहते हैं कि उनकी गहराई की थाह नहीं है और वे पाताल तक जाते हैं.
यहां शिवरात्रि के दिन भी काफी श्रद्धालु देखे जा सकते हैं.
बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी व्रत रखते हैं. शाम को शंकरजी की बारात निकलती है, उसमें बाराती भूत-प्रेत होते हैं. अलग-अलग वेषभूषा में सजे बारातियों और नंदी का नाच देखते ही बनता है. शिवरात्रि को कुंआरी लड़कियां अच्छा जीवनसाथी पाने के लिए व्रत रखती हैं, ताकि उन्हें शिव जी जैसा ही पति मिले. बैद्यनाथ धाम ट्रेन या बस से जाया जा सकता है.
Baidyanath Dham is also called the twelfth Shiva Jyotirlinga, which is prominent among the 51 Shakti Peethas. The linga of Lord Shiva is revered here. Between July and August (in the month of Sawan), 70 to 80 lakh devotees from different places in India take holy water from the Ganges river at Sultanganj and pay a 108-km trek on the path and offer it to Shiva.
According to the Dha Shiva Purana, there is a very long story behind Baidyanath Dham's reputation. It is said that once Ravana pleased Shiva with his penance. Being happy, Shiv ji asked Ravana his wish, Ravan said that I want to establish your Shivling in your Lanka city.
After much deliberation, Shiva Ji accepted Ravana's wish and said that I have only one condition - do not keep it somewhere on the way, otherwise I will be established there. An attempt to take Ravana's Shivalinga caused panic in Devaloka, when Lord Vishnu took the form of a Brahmin and reached Ravana. When Ravana suddenly got short-sighted, he quickly handed the Shivling to the Brahmin.
Seeing the opportunity, Lord Vishnu in the form of a Brahmin placed the Shivling on the ground and disappeared from there. Later, Ravana tried hard to move the Shivling, but he did not bother. In the end, Ravana had to worship the Shivalinga at the same place after being completed.
Legend related to Shivling
Ravana, full of regrets, worshiped Shivalinga daily by offering Ganga water. It is said that a tribal named Baiju worshiped Shivalinga quite a lot, due to his immense devotion, Baijunath or Baidyanath started going to that place. After some time the site became famous as Baidyanath Dham. Baidyanath Dham is one of the Dwadash Jyotirlingas in Deoghar.
According to the entire Shiva Purana, Lord Shankar dwells in the Linga form in various pilgrimage sites for the welfare of all beings. The significance of Baidyanath Shivalinga is also in the form of a lustful Linga
It is the only place in India with Jyotirlinga and Shaktipeeth. Both are well-known. The head of the temple is on the east side and is made of flat stone, where there is also a pyramid-like tower. To the east of the northern verandah of the temple is a large pool, from where the offered Ganges water and milk flow, which is considered quite sacred.
22 temples in the temple premises
There are a total of 22 temples in the premises of Baidyanath Temple. It is said that Lord Shiva himself liberates in Baidyanath Dham and all those who come to see him are liberated. Baidyanath Mahadev is also famous as Raavanor Baidyanath. Baidyanath Dham is also called The Hardpeeth, which is recognized as Shaktipeeth.
At the place where the broken heart of Sati was cut off, Baidyanath Jyotirlinga is established and that place is called Shradapith. It is popularly believed that in the month of Sawan, Lord Shankar resides in Devghar with mother Parvati as Baba Baidyanath and fulfills the wishes of the devotees.
The temple door opens at 4 am and closes at 3-4 pm. Prayer begins at 6 pm. The last prayer time is fixed at 9 pm but on special festivals, the period of worship is extended.
The path from Sultanganj to Devghar in Sawan is gracious with the movement of devotees and the slogans of Bhole Baidyanath Ki Jai, Bol Album etc. On this auspicious occasion, a huge Shravani Mela that lasts for a month is also held. There is so much crowd here that the government is already ready to make adequate arrangements for security and convenience to avoid any untoward incident.
Many legends are associated with the temple
There are many legends about this temple, such as the spirits trying to steal the golden urn of the temple. A little away from the temple is the Shivalinga, which has seven Akshaya Kunds. It is said that they do not have the depth of their depth and they go to Hades.
Devotees can also be seen here on the day of Shivaratri.
Everyone observes fast from child to old. Shankarji's procession comes out in the evening, there are ghosts and ghosts in it. Dressed in different costumes, the dance of the natives and Nandi is made. Shivaratri fasts on virgin girls to get a good life partner, so they got a husband like Shiva. Baidyanath Dham can go by train or bus.
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