हनुमान जी श्राप मुक्त हुये

हनुमान जी श्राप मुक्त हुये


हरे राम हो हरे राम हो,
-:- हनुमान जी श्राप मुक्त हुये -:-
और सम्पाती गीध कहने लगा- जो बुद्धिनिधान सौ योजन यानि चार सौ कोस समुद्र लाँघ सकेगा, वही श्रीराम जी का कार्य कर सकेगा। इस प्रकार कहकर गीध सम्पाती गुफा मे चला गया।

और तब सभी वानर विशाल समुद्र को देख सोच में पड़ गए कि समुद्र पार कैसे पहुंचा जाये, ऋक्षराज जाम्बवान कहने लगे- मैं बूढ़ा हो गया। राजा बलि के समय जब भगवान श्रीहरि ने वामन अवतार लिया था, तब मैंने दो ही घड़ी में दौड़कर उस परमं और दिव्य शरीर की सात परिक्रमा कर लीं थी।
तभी अंगद ने कहा- मैं पार तो चला जाऊँगा, परंतु उस ओर से लौटने का मेरे हृदय में कुछ संदेह है।

और इधर पवनसुत हनुमान जी जो एक ऊंचे पत्थर पर बैठे उस विशाल समुद्र को निहार रहे थे, तब ऋक्षराज जाम्बवान उनके पास गये और कहने लगे- हे हनुमान्‌! हे बलवान्‌! सुनो, तुम क्यों चुप बैठे हो, तुम पवन के पुत्र हो और बल में पवन के समान हो। तुम बुद्धि-विवेक और विज्ञान की खान हो, जगत्‌ में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो तुम न कर सको।

और जाम्बवान जी ने उन्हें उनके बाल्यकाल यानि बचपन की कथा को कह सुनाया, और परमं तपस्वी ऋषि के श्राप की याद दिलाकर उन्हे श्राप मुक्त कराया और जाम्बवंत जी कहने लगे, हनुमान श्रीराम जी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के अत्यंत विशालकाय हो गए। तब जाम्बवान जी ने कहा- हे हनुमान तुम समुद्र पार जाकर सीताजी का पता लगाओ।

जाम्बवान के सुंदर वचन सुनकर हनुमान जी के हृदय को बहुत ही भाए। वे बोले- हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना जब तक मैं सीताजी को देखकर लौट न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्रीराम जी को धारण करके हनुमान जी हर्षित होकर चले।

समुद्र के किनारे पर एक ऊंचा पर्वत था। हनुमान जी कूदकर उसके ऊपर चढ़ गए। और अपनी भुजाओं को तान कर बार-बार श्रीराम-श्रीराम का स्मरण करते-करते हनुमान जी ने छलांग लगा दी। जिस पर्वत पर हनुमान जी पैर रखकर उछले, वह तुरंत ही पाताल में धँस गया। और हनुमान जी ऐसे चले हैं, जैसे रघुकुल नंदन श्रीराम जी का अमोघ बाण चलता है, उसी तरह राम-राम का जप करते हुये हनुमान जी चले हैं।

तुलसीदास जी कहते हैं- श्री रघुवीर का यश-भव यानि जन्म-मरण रूपी रोग की अचूक दवा है। जो पुरुष और स्त्री इसे सुनेंगे, त्रिशिरा के शत्रु श्रीराम जी उनके सब मनोरथों को सिद्ध करेंगे।
बोलिऐ- सियावर रामचन्द्र की जै 

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