Amar Katha of Maa Murari Devi-माँ मुरारी देवी जी की अमर कथा
प्राचीन काल में पृथ्वी पर मूर नामक एक पराक्रमी दैत्य हुआ। उस दैत्य ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की और उनसे वरदान मांगा कि मैं अमर हो जाऊं। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं विधि के विधानों से बन्धा हूं, इसलिये तुम्हे अमर होने का वरदान नहीं दे सकता, परन्तु मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम्हारा वध किसी भी देवता, मानव या जानवर के द्वारा नहीं होगा बल्कि एक कन्या के हाथों से होगा।
घमण्डी मूर दैत्य ने सोचा कि मैं तो इतना शक्तिशाली हूं, एक साधारण कन्या मेरा वध कहाँ कर पायेगी? मैं तो अमर ही हो गया हूं। ये सोचकर उस दैत्य ने धरती पर अत्याचार करने शुरू कर दिये। उसने स्वर्ग पर आक्रमण करके देवताओं को वहाँ से निष्कासित कर दिया और स्वयं स्वर्ग का राजा बन बैठा। समस्त सृष्टि उसके अत्याचारों से त्रहि-त्राहि कर उठी। वो बहुत उपद्रव मचाता था।
घमण्डी मूर दैत्य ने सोचा कि मैं तो इतना शक्तिशाली हूं, एक साधारण कन्या मेरा वध कहाँ कर पायेगी? मैं तो अमर ही हो गया हूं। ये सोचकर उस दैत्य ने धरती पर अत्याचार करने शुरू कर दिये। उसने स्वर्ग पर आक्रमण करके देवताओं को वहाँ से निष्कासित कर दिया और स्वयं स्वर्ग का राजा बन बैठा। समस्त सृष्टि उसके अत्याचारों से त्रहि-त्राहि कर उठी। वो बहुत उपद्रव मचाता था।
सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए, तो भगवान ने कहा चिंता मत करो, मैं अवश्य आपके कष्टों का निवारण करूँगा । भगवान विष्णु और मूर दैत्य का आपस में युद्ध आरम्भ हो गया जो दीर्घकाल तक चलता रहा। युद्ध को समाप्त न होता देख कर भगवान नारायण को स्मरण था की मूर का वध केवल कन्या के हाथों ही हो सकता है, ऐसा विचार करके वो हिमालय में स्थित सिकन्दरा धार (सिकन्दरा री धार) नामक पहाड़ी पर एक गुफा में जाकर लेट गए।
मूर उनको ढूंढता हुआ वहां पहुंचा तो उस ने देखा की भगवान निद्रा में हैं और हथियार से भगवान पे वार करूं, ऐसा सोचा तो भगवान के शरीर से 5 ज्ञानेद्रियाँ, 5 कर्मेंद्रियाँ, 5 शरीर कोष और मन ऐसे 16 इन्द्रियों से एक कन्या उत्पन्न हुयी। उस कन्या का मूर दैत्य के साथ घोर युद्ध हुआ। तब उस देवी ने अपने शस्त्रों के प्रहार से मूर दैत्य को मार डाला। मूर दैत्य का वध करने के कारण ये कन्या माता मुरारी के नाम से जानी गयीं और उसी पहाड़ी पर दो पिण्डियों के रूप में स्थापित हो गयीं जिनमें से एक पिण्डी को शान्तकन्या और दूसरी को कालरात्री का स्वरूप माना गया है। माँ मुरारी के कारण ये पहाड़ी मुरारी धार के नाम से प्रसिद्ध हुई।
द्वापर युग मे जब पांडव अपना अग्यातवास काट रहे थे, तब वो लोग इस स्थान पर आये। देवी ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि पहाड़ की चोटी पर जाकर खुदाई करो, उस स्थान पर तुम्हें मेरी पिण्डियां मिलेंगी। उस स्थान पर एक मन्दिर बना कर उन पिण्डियों की स्थापना करो। माता के आदेशनुसार पांडवों ने वहाँ एक भव्य मन्दिर का निर्माण किया। आज भी मन्दिर से थोड़े नीचे जाकर देखें तो वहाँ पर पांडवों के पदचिन्ह कुछ पत्थरों पर देखे जा सकते हैं।
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