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Showing posts from July, 2020

जब भगवान शिव को जलती लकड़ी से पीटा गया था-When Lord Shiva was beaten with burning wood

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देवों में देव महादेव की कोई जलती लकड़ी से पिटाई करे ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता लेकिन, यह बात बिल्कुल सच है। बात कुछ 1360 ई. के आस-पास की है। उन दिनों बिहार के विस्फी गांव में एक कवि हुआ करते थे। कवि का नाम विद्यापति था। कवि होने के साथ-साथ विद्यापति भगवान शिव के अनन्य भक्त भी थे। इनकी भक्ति और रचनाओं से प्रसन्न होकर भगवान शिव को इनके घर नौकर बनकर रहने की इच्छा हुई।  भगवान शिव एक दिन एक जाहिल गंवार का वेष बनाकर विद्यापति के घर आ गये। विद्यापति को शिव जी ने अपना नाम उगना बताया। विद्यापति की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी अतः उन्होंने उगना को नौकरी पर रखने से मना कर दिया। लेकिन शिव जी मानने वाले कहां थे। सिर्फ दो वक्त के भोजन पर नौकरी करने के लिए तैयार हो गये। इस पर विद्यापति की पत्नी ने विद्यापति से उगना को नौकरी पर रखने के लिए कहा। पत्नी की बात मानकर विद्यापति ने उगना को नौकरी पर रख लिया।  एक दिन उगना विद्यापति के साथ राजा के दरबार में जा रहे थे। तेज गर्मी के वजह से विद्यापति का गला सूखने लगा। लेकिन आस-पास जल का कोई स्रोत नहीं था। विद्यापति ने उगना से कहा कि कहीं से जल का प्रबंध करो अन्यथा म

भगवान कृष्ण ने अपने ही पुत्र को कोढ़ी होने का श्राप क्यों दिया!-Why did Lord Krishna curse his own son to be a leper!

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आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण और उनके पुत्र सांबा से सम्बंधित एक पौराणिक प्रसंग सुनाएंगे। इस कथा का सम्बन्ध पाकिस्तान के मुल्तान शहर में स्तिथ सूर्य मंदिर से भी जुड़ा है। भविष्य पुराण, स्कंद पुराण और वराह पुराण में इस बात का उल्लेख है कि श्री कृष्ण ने स्वयं अपने पुत्र सांबा को कोढ़ी होने का श्राप दिया था। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए सांबा ने सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। जो की पाकिस्तान के मुलतान शहर में स्थित है। इस सूर्य मंदिर को आदित्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता था। लेकिन श्री कृष्ण ने ऐसा क्यों किया, आइये जानते है इसके पीछे की कहानी। भगवान श्री कृष्ण के आठ रानिया थी।  जिनमे से एक निषादराज जामवंत की पुत्री जामवंती थी। जामवंत उन गिने चुने पौराणिक पात्रो में से एक है जो रामायण और महाभारत दोनों काल में उपस्तिथ थे। ग्रंथों के अनुसार बहुमूल्य मणि हासिल करने के लिए  भगवान श्रीकृष्ण और जामवंत में 28 दिनों तक युद्ध चला था ।  युद्ध के दौरान जब जामवंत ने कृष्ण के स्वरूप को पहचान लिया तब उन्होंने मणि समेत अपनी पुत्री जामवंती का हाथ भी उन्हें सौंप दिया।  कृष्ण और जामवंती के पुत्र का नाम ही

अष्टा लक्ष्मी स्तोत्रम्-ASHTA LAKSHMI STOTRAM

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आदिलक्ष्मि सुमनस वंदित सुंदरि माधवि, चंद्र सहोदरि हेममये  मुनिगण वंदित मोक्षप्रदायनि, मंजुल भाषिणि वेदनुते ।  पंकजवासिनि देव सुपूजित, सद्गुण वर्षिणि शांतियुते  जय जयहे मधुसूदन कामिनि, आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ॥ १ ॥ धान्यलक्ष्मि अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि, वैदिक रूपिणि वेदमये  क्षीर समुद्भव मंगल रूपिणि, मंत्रनिवासिनि मंत्रनुते । मंगलदायिनि अंबुजवासिनि, देवगणाश्रित पादयुते  जय जयहे मधुसूदन कामिनि, धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् ॥ २ ॥ धैर्यलक्ष्मि जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि, मंत्र स्वरूपिणि मंत्रमये  सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद, ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।  भवभयहारिणि पापविमोचनि, साधु जनाश्रित पादयुते  जय जयहे मधु सूधन कामिनि, धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ॥ ३ ॥ गजलक्ष्मि जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि, सर्वफलप्रद शास्त्रमये  रधगज तुरगपदाति समावृत, परिजन मंडित लोकनुते ।  हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित, ताप निवारिणि पादयुते  जय जयहे मधुसूदन कामिनि, गजलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ॥ ४ ॥ संतानलक्ष्मि अयिखग वाहिनि मोहिनि चक्रिणि, रागविवर्धिनि ज्ञानमये  गुणगणवारधि लोकहितैषिणि, सप्तस्वर भूषित गाननुते । सकल सुरासुर देव

दुनिया का एकमात्र स्थान जहां भगवान हनुमान अपनी माता के साथ विराजते हैं-The only place in the world where Lord Hanuman sits with his mother

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सालासर बालाजी धाम हनुमानजी के 10 प्रमुख सिद्ध शक्ति पीठों में से सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। सालासर हनुमानजी का मंदिर पूर्व मुखी है जिसके आग्नेय क्षेत्र में धूनी जलती रहती है। इसके ईशान क्षेत्र में कुआं है। इस मंदिर का नैत्र्ग्य कोण क्षेत्र बंद है। श्रीबाला जी के मंदिर की पूर्व दिशा में 2 किलोमीटर पर अंजना माता का मंदिर है। सन् 1754 ई. में नागौर के असोटा निवासी साखा जाट को घिटोला के खेत में हल जोतते समय एक मूर्ति मिली।  रात को स्वप्न में श्री हनुमान ने प्रकट होकर मूर्ति को सालासर पहुंचाने का आदेश दिया। उसी रात सालासर में भक्त मोहनदास जी को भी हनुमान जी ने दर्शन देकर कहा कि असोटा ठाकुर द्वारा भेजी गई काले पत्थर की मूर्ति को टीले पर जहां बैल चलते-चलते रुक जाएं, वहीं श्री बालाजी की प्रतिमा स्थापित कर देना। वह बैलगाड़ी आज भी सालासर धाम में दक्षिण पोल पर दर्शनार्थ रखी हुई है। सालासर में स्वयं हनुमानजी स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हैं। यह विश्व में हनुमान भक्तों की असीम श्रद्धा का केंद्र है। यहां हर भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती हैं।  लोकमान्यता के अनुसार कुछ वर्षों के लिए माता अंजना व हनुमानजी

काठगढ़ महादेव, दुनिया का एकमात्र अर्धनारीश्वर मंदिर-Kathgarh Mahadev, world's only Ardhanarishwar temple

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मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू  है। इस शिव मंदिर में विशाल शिवलिंग दो भागों में बंटा हुआ है, जिसे मां पार्वती और भगवान शिव के रूपों में माना जाता है। खास बात यह है कि ग्रहों और नक्षत्रों के अनुसार इनके दोनों भागों के बीच का अंतर घटता-बढ़ता रहता है। माता पार्वती और  सांप भी स्वयंभू प्रकट हुए हैं… देवभूमि  हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के इंदौरा उपमंडल में स्थित काठगढ़ महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। इस मंदिर के साथ कई पौराणिक किवदंतियां जुड़ी हुई है। लोगों के कथनानुसार मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू प्रकट है। इस शिव मंदिर में विशाल शिवलिंग दो भागों में बंटा हुआ है, जिसे मां पार्वती और भगवान शिव के रूपों में माना जाता है। खास बात यह है कि ग्रहों और नक्षत्रों के अनुसार इनके दोनों भागों के बीच का अंतर घटता-बढ़ता रहता है। माता पार्वती और उनका प्रिय सांप भी स्वयं-भू प्रकट है। गर्मी के मौसम में यह अलग हो जाते हैं और सर्दियों में आपस में जुड़ जाते हैं। इसी रहस्य के कारण यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। काठगढ़ मंदिर के महत्व के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जात

क्यों आए भगवान शिव, महाकाली के पैरों के नीचे? Why did Lord Shiva come under the feet of Mahakali?

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सभी देवता मिल कर महाकाली की शरण में गए। मां काली असल में सुन्दरी रूप भगवती दुर्गा का काला और डरावना रूप हैं, जिनकी उत्पत्ति राक्षसों को मारने के लिए ही हुई थी। महाकाली ने देवताओं की रक्षा के लिए विकराल रूप धारण कर युद्ध भूमी में प्रवेश किया। मां काली की प्रतिमा देखें तो देखा जा सकता है की वह विकराल मां हैं। जिसके हाथ में खप्पर है,लहू टपकता है तो गले में खोपड़ीयों की माला है मगर मां की आंखे और ह्रदय से अपने भक्तों के लिए प्रेम की गंगा बहती है। महाकाली ने राक्षसों का वध करना आरंभ किया लेकिन रक्तबीज के खून की एक भी बूंद धरती पर गिरती तो उस से अनेक दानवों का जन्म हो जाता जिससे युद्ध भूमी में दैत्यों की संख्या बढ़ने लगी। तब मां ने अपनी जिह्वा का विस्तर किया। दानवों का एक बूंद खून धरती पर गिरने की बजाय उनकी जिह्वा पर गिरने लगा। वह लाशों के ढेर लगाती गई और उनका खून पीने लगी। इस तरह महाकाली ने रक्तबीज का वध किया लेकिन तब तक महाकाली का गुस्सा इतना विक्राल रूप से चुका था की उनको शांत करना जरुरी था मगर हर कोई उनके समीप जाने से भी डर रहा था। सभी देवता भगवान शिव के पास गए और महाकाली को शांत करने के