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Showing posts from June, 2020

सिमसा माता मंदिर, हिमाचल प्रदेश-Simsa Mata Temple, Himachal Pradesh

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हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के लड़-भड़ोल तहसील के सिमस नामक खूबसूरत स्थान पर स्थित माता सिमसा मंदिर दूर दूर तक प्रसिद्ध है। माता सिमसा या देवी सिमसा को संतान-दात्री के नाम से भी जाना जाता है। हर वर्ष यहां निसंतान दंपति संतान पाने की इच्छा ले कर माता के दरबार में आते हैं। नवरात्रों में होने वाले इस विशेष उत्सव को स्थानीय भाषा में सलिन्दरा कहा जाता है। सलिन्दरा का अर्थ है स्वप्न आना होता है। नवरात्रों में निसंतान महिलायें मंदिर परिसर में डेरा डालती हैं और दिन रात मंदिर के फर्श पर सोती हैं ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं माता सिमसा के प्रति मन में श्रद्धा लेकर से मंदिर में आती हैं माता सिमसा उन्हें स्वप्न में मानव रूप में या प्रतीक रूप में दर्शन देकर संतान का आशीर्वाद प्रदान करती है। स्वप्न में लकड़ी या पत्थर दिखने पर नहीं होती है संतान मान्यता के अनुसार, यदि कोई महिला स्वप्न में कोई कंद-मूल या फल प्राप्त करती है तो उस महिला को संतान का आशीर्वाद मिल जाता है। देवी सिमसा आने वाली संतान के लिंग-निर्धारण का भी संकेत देती है। जैसे कि, यदि किसी महिला को अमरुद का फल मिलता है तो समझ लें कि लड़का हो

हनुमान जी को क्यों चढ़ाते है सिंदूर का चोला ?-why we offer vermilion to hanuman?

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    रामचरित मानस के अनुसार जब राम जी लक्ष्मण और सीता सहित अयोध्या लौट आए तो एक दिन हनुमान जी माता सीता के कक्ष में पहुंचे। उन्होंने देखा कि माता सीता लाल रंग की कोई चीज मांग में सजा रही हैं। हनुमान जी ने उत्सुक हो माता सीता से पूछा यह क्या है जो आप मांग में सजा रही हैं। माता सीता ने कहा यह सौभाग्य का प्रतीक सिंदूर है। इसे मांग में सजाने से मुझे राम जी का स्नेह प्राप्त होता है और उनकी आयु लंबी होती है। यह सुन कर हनुमान जी से रहा न गया ओर उन्होंने अपने पूरे शरीर को सिंदूर से रंग लिया तथा मन ही मन विचार करने लगे इससे तो मेरे प्रभु श्रीराम की आयु ओर लम्बी हो जाएगी ओर वह मुझे अति स्नेह भी करेंगे। सिंदूर लगे हनुमान जी प्रभु राम जी की सभा में चले गए।   राम जी ने जब हनुमान को इस रुप में देखा तो हैरान रह गए। राम जी ने हनुमान से पूरे शरीर में सिंदूर लेपन करने का कारण पूछा तो हनुमान जी ने साफ-साफ कह दिया कि इससे आप अमर हो जाएंगे और मुझे भी माता सीता की तरह आपका स्नेह मिलेगा। हनुमान जी की इस बात को सुनकर राम जी भाव विभोर हो गए और हनुमान जी को गले से लगा लिया। उस समय से ही हनुमान जी को सिंदूर अति प

क्यों चढ़ाया जाता है शनि देव को तेल ?-why we should offer oil for Shani Dev?

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कथा इस प्रकार है शास्त्रों के अनुसार रामायण काल में एक समय शनि को अपने बल और पराक्रम पर घमंड हो गया था। उस काल में हनुमानजी के बल और पराक्रम की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली हुई थी। जब शनि को हनुमानजी के संबंध में जानकारी प्राप्त हुई तो शनि बजरंग बली से युद्ध करने के लिए निकल पड़े। एक शांत स्थान पर हनुमानजी अपने स्वामी श्रीराम की भक्ति में लीन बैठे थे, तभी वहां शनिदेव आ गए और उन्होंने बजरंग बली को युद्ध के ललकारा। युद्ध की ललकार सुनकर हनुमानजी शनिदेव को समझाने का प्रयास किया, लेकिन शनि नहीं माने और युद्ध के लिए आमंत्रित करने लगे। अंत में हनुमानजी भी युद्ध के लिए तैयार हो गए। दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ। हनुमानजी ने शनि को बुरी तरह परास्त कर दिया। युद्ध में हनुमानजी द्वारा किए गए प्रहारों से शनिदेव के पूरे शरीर में भयंकर पीड़ा हो रही थी। इस पीड़ा को दूर करने के लिए हनुमानजी ने शनि को तेल दिया। इस तेल को लगाते ही शनिदेव की समस्त पीड़ा दूर हो गई। तभी से शनिदेव को तेल अर्पित करने की परंपरा प्रारंभ हुई। शनिदेव पर जो भी व्यक्ति तेल अर्पित करता है, उसके जीवन की समस्त परेशानियां दूर हो जाती ह

आखिर किस कारण राम ने लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया? Why load Rama gave Capital punishment to Laxman?

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ये घटना उस वक़्त की है जब श्री राम लंका विजय करके अयोध्या लौट आते है और अयोध्या के राजा बन जाते है। एक दिन यम देवता कोई महत्तवपूर्ण चर्चा करने श्री राम के पास आते है। चर्चा प्रारम्भ करने से पूर्व वो भगवान राम से कहते है की आप जो भी प्रतिज्ञा करते हो उसे पूर्ण करते हो। मैं भी आपसे एक वचन मांगता हूं कि जब तक मेरे और आपके बीच वार्तालाप चले तो हमारे बीच कोई नहीं आएगा और जो आएगा, उसको आपको मृत्युदंड देना पड़ेगा। भगवान राम, यम को वचन दे देते है। राम, लक्ष्मण को यह कहते हुए द्वारपाल नियुक्त कर देते है की जब तक उनकी और यम की बात हो रही है वो किसी को भी अंदर न आने दे, अन्यथा उसे उन्हें मृत्युदंड देना पड़ेगा। लक्ष्मण भाई की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो जाते है। लक्ष्मण को द्वारपाल बने कुछ ही समय बीतता है वहां पर ऋषि दुर्वासा का आगमन होता है। जब दुर्वासा ने लक्ष्मण से अपने आगमन के बारे में राम को जानकारी देने के लिये कहा तो लक्ष्मण ने विनम्रता के साथ मना कर दिया। इस पर दुर्वासा क्रोधित हो गये तथा उन्होने सम्पूर्ण अयोध्या को श्राप देने की बात कही। लक्ष्मण समझ गए कि ये एक विकट स्थिति है जिसमें या

आज के मुख्य प्रातः कालीन आरती श्रृंगार दर्शन विश्व विख्यात शक्तिपीठ आदिशक्ति जगजननी मां श्री नैना देवी जी 03/06/2020

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🥀🌻🌸🌹🌺🌼🌷आज के मुख्य प्रातः कालीन आरती श्रृंगार दर्शन विश्व विख्यात शक्तिपीठ आदिशक्ति जगजननी मां श्री नैना देवी जी 🥀🌼🌷🌺🌹🏵🌻 सभी भक्त दर्शन करके जय माता दी का जैकारा जरूर लगवाये! 🔔!!!!जय माता दी जी!!!!🔔 🙏ਭਾਗਾਂ ਵਾਲਿਓ ਮੱਥਾ ਟੇਕ ਲੋ,ਲਵਾ ਦੋ ਜੈ ਮਾਤਾ ਦੀ ਬੋਲਕੇ ਹਾਜ਼ਰੀ 🙏

माता मनसा देवी जी के आज के भव्य दिव्ये दर्शन 03/06/2020

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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ या देवी सर्व भूतेषु शान्ति रुपेण संस्थिता नम: तस्यै नम: तस्यै नम: तस्यै नमो नम:   ||卐||~~~||  💐माता मनसा देवी जी के आज के भव्य  दिव्ये दर्शन💐 ||~~~||卐||

श्री शीतला माता चालीसा-Shri Sheetla Mata Chalisa

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दोहा :-  जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान। होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान।।  घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार। शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार।।     चौपाई :- जय जय श्री शीतला भवानी। जय जग जननि सकल गुणधानी।। गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती। पूरन शरन चंद्रसा साजती।। विस्फोटक सी जलत शरीरा। शीतल करत हरत सब पीड़ा।। मात शीतला तव शुभनामा। सबके काहे आवही कामा।।   शोक हरी शंकरी भवानी। बाल प्राण रक्षी सुखदानी।। सूचि बार्जनी कलश कर राजै। मस्तक तेज सूर्य सम साजै।। चौसट योगिन संग दे दावै। पीड़ा ताल मृदंग बजावै।। नंदिनाथ भय रो चिकरावै। सहस शेष शिर पार ना पावै।।   धन्य धन्य भात्री महारानी। सुर नर मुनी सब सुयश बधानी।। ज्वाला रूप महाबल कारी। दैत्य एक विश्फोटक भारी।। हर हर प्रविशत कोई दान क्षत। रोग रूप धरी बालक भक्षक।। हाहाकार मचो जग भारी। सत्यो ना जब कोई संकट कारी।।   तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा। कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा।। विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो। मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो।। बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा। मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा।। अब नही मातु काहू गृह जै हो। जह अपवित्र वही घर

रावण के पिछले जन्मो की कथा-Story of Ravana's past lives

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रावण अपने पूर्वजन्म में भगवान विष्णु के द्वारपाल हुआ करते थे पर एक श्राप के चलते उन्हें तीन जन्मो तक राक्षस कुल में जन्म लेना पड़ा था।  आज इस लेख में हम आपको रावण के दो पूर्वजन्मों और एक बाद के जन्म के बारे में बताएँगे। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु के दर्शन हेतु सनक, सनंदन आदि ऋषि बैकुंठ पधारे परंतु भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय ने उन्हें प्रवेश देने से इंकार कर दिया। ऋषिगण अप्रसन्न हो गए और क्रोध में आकर जय-विजय को शाप दे दिया कि तुम राक्षस हो जाओ। जय-विजय ने प्रार्थना की व अपराध के लिए क्षमा माँगी। भगवान विष्णु ने भी ऋषियों से क्षमा करने को कहा। तब ऋषियों ने अपने शाप की तीव्रता कम की और कहा कि तीन जन्मों तक तो तुम्हें राक्षस योनि में रहना पड़ेगा और उसके बाद तुम पुनः इस पद पर प्रतिष्ठित हो सकोगे। इसके साथ एक और शर्त थी कि भगवान विष्णु या उनके किसी अवतारी-स्वरूप के हाथों तुम्हारा मरना अनिवार्य होगा। यह शाप राक्षसराज, लंकापति, दशानन रावण के जन्म की आदि गाथा है। भगवान विष्णु के ये द्वारपाल पहले जन्म में हिरण्याक्ष व हिरण्यकशिपु राक्षसों के रूप में जन्मे। हिरण्याक्ष राक्षस ब

गणेश विसर्जन क्यों होता है?-Why does Ganesh immersion happen?

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धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार  श्री वेद व्यास ने  गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्री गणेश को लगातार 10 दिन तक सुनाई थी जिसे श्री गणेश जी ने अक्षरश: लिखा था।10दिन बाद जब वेद व्यास जी नेआंखें खोली तो पाया कि 10 दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी का तापमान बहुत अधिक हो गया है। तुरंत वेद व्यास जी ने गणेश जी को निकट के कुंड में ले जाकर ठंडा किया था। इसलिए गणेश स्थापना कर चतुर्दशी को उनको शीतल किया जाता है।

साल में दो बार क्यों मानते है नवरात्रि ? why do celebrate navratri two times in year ?

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नवरात्रि साल में दो बार मनाया जाने वाला इकलौता उत्सव है- एक नवरात्रि गर्मी की शुरुआत पर चैत्र में और दूसरा शीत की शुरुआत पर आश्विन माह में। गर्मी और जाड़े के मौसम में सौर-ऊर्जा हमें सबसे अधिक प्रभावित करती है। क्योंकि फसल पकने, वर्षा जल के लिए बादल संघनित होने, ठंड से राहत देने आदि जैसे जीवनोपयोगी कार्य इस दौरान संपन्न होते हैं। इसलिए पवित्र शक्तियों की आराधना करने के लिए यह समय सबसे अच्छा माना जाता है। प्रकृति में बदलाव के कारण हमारे तन-मन और मस्तिष्क में भी बदलाव आते हैं। इसलिए शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए हम उपवास रखकर शक्ति की पूजा करते हैं। एक बार इसे सत्य और धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है, वहीं दूसरी बार इसे भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

सावन के महीने में गंगा का पवित्र जल कावड़ में क्यों लाया जाता है?-Why is the holy water of the Ganges brought to Kavad in the month of Sawan?

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ये कथा उस समय की है जब माता सती ने शिव को पाने के लिए दूसरा जन्म पार्वती के रूप में लिया!. माता पार्वती ने शिव को पाने के लिए प्रेम और भक्ति का मार्ग़ अपनाया! एक समय माता पार्वती को देव ऋषि नारद ने अपने हाथो से मिटटी का शिवलिंग बनाने के लिए कहा  जब माता पार्वती ने मिटटी का शिवलिंग बनाया ! माता पार्वती ने शिवलिंग में जल चढ़ाने के लिए जल को मानसरोवर से लेकर आना उचित समझा, उस समय पृय्वी पर गंगा नदी नही बहती थी . तभी माता पार्वती के पिता हिमनरेश ने अपने धनुष के दोनों और मिटटी के बर्तन को बाधकर उनके के लिए कावड़ बनायीं. उस कावड़ में माता पार्वती शिव के लिए जल लेने चले गयी. तब शिव जी ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक राजा का अवतार लिए और उन्हें रस्ते में मिले और कहा की तुम कहा जा रही हो. तभी माता पार्वती ने कहा में अपने स्वामी के स्नान के लिए मान सरोवर से पवित्र जल लेने जा रही हू. तभी राजा रूप में महादेव ने अपना ही अपमान किया और कहा की तुम्हारे स्वामी इतने अपवित्र है की उनको स्नान करने के लिए अपवित्र जल की जरुरत पढ़े , तभी माता पार्वती ने कहा की मेरे स्वामी तो बहुत पवित्र है मुझे ये भय है क़ि मेरे का

किसके श्राप के कारण माता पार्वती अपने गर्भ से किसी बच्चे को जन्म नहीं दे पाईं?-Due to whose curse, mother Parvati could not give birth to any child from her womb?

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ये कथा उस समय की जब माता सती ने अग्नि कुण्ड में कूदकर प्राण त्याग दिए तब महादेव ने उनके जाने के बाद शक्ति पीठ की स्थापना करने के बाद अमरनाथ गुफा में समादि ले ली थी. जब माता सती से पार्वती के रूप में आई. और वह महादेव को समादि से बाहर लेकर आना चाहती थी. तभी देवराज इन्दर ने अपने स्वार्थ के कारण कामदेव और रति को महादेव की समादि तोड़ने के लिए आदेश दिया. इस से काम देव ने माता पार्वती से बोला की हमे देवराज इन्दर ने आप की सहायता के लिए भेजा है. काम देव ने महादेव  के  माथे पर धनुष चला  दिया  था. जिस से महादेव तपस्या (समाधि ) से बाहर आ गए , और वे क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी तीसरी आँख से कामदेव को भसम कर  दिया  . जिस से कामदेव की पत्नी रति ने देव राज को ये अभिशाप दे दिया की आपने जिस राजगद्दी को बचाने के लिए हमे भेजा था वे राजगद्दी कभी सुरक्षित नही रहेगी हमेशा आपको असुरो का भय सताता रहेगा. इस पर रति ने माता पार्वती को भी ये अभिशाप दे दिया की आप कभी अपनी कोख से किसी संतान को जन्म नही दे  सकेगी. ऐसा इस लिए अभिशाप दिया गया. क्यों उस समय तारकासुर ने देवतओं पर हमला कर रखा था. तारकासुर की मृत्यु केवल

श्री गंगा चालीसा- Shri Ganga Chalisa

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    दोहा जय जय जय जग पावनी जयति देवसरि गंग । जय शिव जटा निवासिनी अनुपम तुंग तरंग ॥   चौपाई जय जग जननि अघ खानी, आनन्द करनि गंग महरानी । जय भागीरथि सुरसरि माता, कलिमल मूल दलनि विखयाता ।।   जय जय जय हनु सुता अघ अननी, भीषम की माता जग जननी । धवल कमल दल मम तनु साजे, लखि शत शरद चन्द्र छवि लाजे ।।   वाहन मकर विमल शुचि सोहै, अमिय कलश कर लखि मन मोहै । जडित रत्न कंचन आभूषण, हिय मणि हार, हरणितम दूषण ।।   जग पावनि त्रय ताप नसावनि, तरल तरंग तंग मन भावनि । जो गणपति अति पूज्य प्रधाना, तिहुं ते प्रथम गंग अस्नाना ।।   ब्रह्‌म कमण्डल वासिनी देवी श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी । साठि सहत्र सगर सुत तारयो, गंगा सागर तीरथ धारयो ।।   अगम तरंग उठयो मन भावन, लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन । तीरथ राज प्रयाग अक्षैवट, धरयौ मातु पुनि काशी करवट ।।   धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढ़ी, तारणि अमित पितृ पद पीढी । भागीरथ तप कियो अपारा, दियो ब्रह्‌म तब सुरसरि धारा ।।   जब जग जननी चल्यो लहराई, शंभु जटा महं रह्‌यो समाई । वर्ष पर्यन्त गंग महरानी, रहीं शंभु के जटा भुलानी ।।   मुनि भागीरथ शंभुहिं ध्यायो, तब इक बूंद जटा से पायो । ताते मातु

किस कारण महादेव ने ब्रम्हदेव जी का पाँचवा सिर काटा था ? -For which reason Mahadev had beheaded the fifth head of Brahma Dev?

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शिव की क्रोधाग्नि का विग्रह रूप कहे जाने वाले कालभैरव का अवतरण मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी को हुआ। इनकी पूजा से घर में नकारत्मक ऊर्जा, जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि का भय नहीं रहता।  काल भैरव के प्राकट्य की निम्न कथा स्कंदपुराण के काशी- खंड के 31वें अध्याय में है।   कथा काल भैरव की  कथा के अनुसार एक बार देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से बारी-बारी से पूछा कि जगत में सबसे श्रेष्ठ कौन है तो स्वाभाविक ही उन्होंने अपने को श्रेष्ठ बताया। देवताओं ने वेदशास्त्रों से पूछा तो उत्तर आया कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, अनादि अंनत और अविनाशी तो भगवान रूद्र ही हैं। वेद शास्त्रों से शिव के बारे में यह सब सुनकर ब्रह्मा ने अपने पांचवें मुख से शिव के बारे में भला-बुरा कहा। इससे वेद दुखी हुए। इसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। ब्रह्मा ने कहा कि हे रूद्र, तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम 'रूद्र' रखा है अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ, ब्रह्मा के इस आचरण पर शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव को उत्पन्न क

पंचकूला से माता चंडी जी के दर्शन

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Mata Chandi Darahan Chandigarh(Panchkula)01/06/2020

कालका से माता काली जी के दर्शन

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Kalka mandir darahan, Kalka  01/06/2020

माता मनसा देवी से सती माता के दर्शन, पंचकूला

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माता मनसा देवी जी के आज के अमर दर्शन जी पंचकुला, हरियाणा से। 01/06/2020

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या देवि सर्व भूतेषु मनसा रूपेणा सम्स्तिथा नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः                                       🙏💐🔥🌷🔱🌹🙏 जय माता की। माता मनसा देवी जी के  आज के अमर दर्शन जी पंचकुला, हरियाणा से।   01/06/2020  🙏💖🔱💐🔥🌹🙏 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ