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रावण की अधिष्ठात्री देवी हैं मां बगलामुखी, बगलामुखी मंदिर, हिमाचल प्रदेश

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रावण की अधिष्ठात्री देवी हैं मां बगलामुखी मा बगुलामुखी दशमहाविद्या में एक देवी है  ब्रह्मा की उपासना से माता का जन्म हुआ। ऐसा माना जाता है कि एक राक्षस को भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था कि कोई भी इंसान या देवता उसे पानी में नहीं मार सकते। इसके बाद वह ब्रह्मा जी के वेद लेकर भाग रहे थे। तब ब्रह्मा ने माँ भगवती का जाप किया। जब मां बगलामुखी ने राक्षस का पीछा किया, तो राक्षस पानी में छिप गया। इसके बाद मां ने बगुले का रूप धारण किया और पानी के अंदर राक्षस का वध कर दिया। त्रेतायुग में मां बगला मुखी को रावण की इष्ट देवी के रूप में भी पूजा जाता है। त्रेतायुग में रावण ने संसार को जीतने के लिए मां की पूजा की थी। इसके अलावा भगवान राम ने रावण पर विजय पाने के लिए मां बगलामुखी की भी पूजा की थी। क्योंकि माता को शत्रुनाशिनी माना जाता है। पीला रंग माता का प्रिय रंग है। मंदिर में सब कुछ पीला है। यहां तक कि प्रसाद भी पीला ही दिया जाता है।

कई सालों से ये मंदिर खड़ा है टेढ़ा, पांड़वों ने करवाया था निर्माण-This temple has been crooked for many years, Pandavas got it constructed

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आज आपको टेढ़ा मंदिर के बारे में जानकारी देते हैं। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में ज्वालामुखी के पास स्थित है। ज्वालामुखी के ज्वाला देवी मंदिर की बगल से ही इसके लिए रास्ता जाता है। ज्वाला जी से इसकी दूरी करीब दो किलोमीटर है। पूरा रास्ता ऊबड़-खाबड़ पत्थरों से युक्त चढ़ाई भरा है। खतरनाक डरावने सुनसान जंगल से होकर यह रास्ता जाता है। यह मंदिर पिछले 104 सालों से टेढ़ा है। कहा जाता है कि वनवास काल के दौरान पांडवों ने इसका निर्माण कराया था। 1905 में कांगड़ा में एक भयानक भूकंप आया। इससे कांगड़ा का किला तो बिलकुल खंडहरों में तब्दील हो गया। भूकंप के ही प्रभाव से यह मंदिर भी एक तरफ को झुककर टेढ़ा हो गया। तभी से इसका नाम टेढ़ा मंदिर है। इसके अन्दर जाने पर डर लगता है कि कहीं यह गिर ना जाए। ...

तारा देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश-Tara Devi Temple, Himachal Pradesh

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    शिमला   के   साथ   लगती   चोटी   पर   स्थित   मां   तारा   का   मंदिर   हर   मनोकामनाओं   का   पूरी   करने   वाला   है।   शिमला   शहर   से   करीब  11  किलोमीटर   की   दूरी   पर   बनाया   गया   यह   मंदिर   काफी   पुराना   है।   हर   साल   यहां   लाखों   लोग   मां   का   आर्शीवाद   लेने   पहुंचते   हैं।   कहा   जाता   है   कि   करीब  250  साल   पहले   मां   तारा   को   पश्चिम   बंगाल   से   शिमला   लाया   गया   था।   सेन   काल   का   एक   शासक   मां   तारा   की   मूर्ति   बंगाल   से   शिमला   लाया   था। जहां   तक   मंदिर   बनाने   की   बात   है   तो   राजा   भूपेंद्र   सेन   ने   मां   का   मंदिर   बनवाया   था।   ऐसा   माना   जाता   है   कि   एक   बार   भूपेंद्र   सेन   तारादेवी   के   घने   जंगलों   में   शिकार   खेलने   गए   थे। इसी   दौरान   उन्हें   मां   तारा   और   भगवान   हनुमान   के   दर्शन   हुए।   मां   तारा   ने   इच्छा   जताई   कि   वह   इस   स्थल   में   बसना   चाहती   हैं   ताकि   भक्त   यहां   आकर   आसानी   से   उनके   दर्शन   कर   सके।   इसके   बाद   राजा   ने   यह