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Showing posts from August, 2020

इस बार श्राद्ध समाप्ति के अगले दिन से नहीं होगी नवरात्रि पूजा, ये है वजह

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इस साल श्राद्ध समाप्ति के अगले दिन नवरात्रि का पावन पर्व शुरू नहीं होगा, बल्कि एक महीने बाद शुरू होगा। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि इस बार श्राद्ध खत्म होते ही अधिकमास लग जाएगा जिसके कारण नवरात्रि पर्व 28-30 दिन बाद मनाया जाएगा। महत्वपूर्ण बात ये है कि इस साल दो महीने अधिकमास लग रहे हैं। ऐसा लीप वर्ष होने के कारण ऐसा हो रहा है। चतुर्मास भी इस साल चार माह की बजाय पांच महीने का होगा। ज्योतिषीय गणना के मुताबिक, 160 वर्ष बाद लीप ईयर और अधिकमास एक साथ पड़ रहे हैं।  कब से लगेंगे श्राद्ध ? इस साल श्राद्ध 2 सितंबर से शुरू होंगे और 17 सितंबर को समाप्त होंगे। इसके अगले दिन 18 सितंबर से अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। वहीं नवरात्रि का पावन पर्व 17 अक्टूबर से शुरू होगा और 25 अक्टूबर को समाप्त होगा। वहीं चतुर्मास देवउठनी के दिन 25 नवंबर को समाप्त होंगे। चतुर्मास की समाप्ति के बाद से ही विवाह, मुंडन एवं अन्य प्रकार के मांगलिक कार्य शुरू होंगे। अभी चल रही है चतुर्मास की अवधि यह चतुर्मास का समय चल रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि इस समय भगवान विष्णु के पाताल लोक में

हरतालिका तीज व्रत कथा Hartalika Teej vrat katha

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भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाले हरतालिका तीज व्रत की कथा इस प्रकार से है- हरतालिका तीज व्रत ( Hartalika Teej Vrat Katha in Hindi) कथानुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे। इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे , जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी। फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वह

क्यों विनायक (गणेश) जी का मस्तक शिव जी ने काटा था ? जानिए विनायक से गणेश बनने की कथा

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  भगवान गणेश का जन्म की कहानी : देवी पार्वती ने एक बार शिवजी के गण नन्दी के द्वारा उनकी आज्ञा पालन में त्रुटि के कारण अपने शरीर के उबटन से एक बालक का निर्माण कर उसमें प्राण डाल दिए और कहा कि तुम मेरे पुत्र हो। तुम मेरी ही आज्ञा का पालन करना और किसी की नहीं।  देवी पार्वती ने यह भी कहा कि मैं स्नान के लिए जा रही हूं। कोई भी अंदर न आने पाए। थोड़ी देर बाद वहां भगवान शंकर आए और देवी पार्वती के भवन में जाने लगे। यह देखकर उस बालक ने विनयपूर्वक उन्हें रोकने का प्रयास किया। बालक का हठ देखकर भगवान शंकर क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। देवी पार्वती ने जब यह देखा तो वे बहुत क्रोधित हो गई। उनकी क्रोध की अग्नि से सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब सभी देवताओं ने मिलकर उनकी स्तुति की और बालक को पुनर्जीवित करने के लिए कहा। तब भगवान शंकर के कहने पर विष्णुजी एक हाथी का सिर काटकर लाए और वह सिर उन्होंने उस बालक के धड़ पर रखकर उसे जीवित कर दिया। तब भगवान शंकर व अन्य देवताओं ने उस गजमुख बालक को अनेक आशीर्वाद दिए। देवताओं ने गणेश , गणपति , विनायक , विघ्नहरता , प्रथम पूज्य आदि कई

भस्मासुर से बचने के लिए यहां छिपे थे भगवान शिव

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श्रीखंड महादेव, भगवान शिव का ये सबसे पूजनीय स्‍थल माना जाता है। इसकी कहानी भी बड़ी ही रोचक है। भगवान शिव को कई महीनों तक मजबूरी में यहां की गुफा में छिपना पड़ा था। हिमाचल के जिला कुल्‍लू में करीब 18500 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह श्रीखंड महादेव सदियों से भगवान शिव के विशाल शिवलिंग रूप का गवाह बनता रहा है। भगवान शिव को यहां अपने एक भक्त की वजह से छिपना पड़ा था। कहा जाता है कि भस्मासुर नामक राक्षस ने कई वर्षों तक भगवान शिव की कड़ी तपस्या की थी। उसकी तपस्या से खुश होकर भगवान भोलेनाथ ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। भस्मासुर ने कहा कि उसे ऐसा वरदान चाहिए कि जिस जीव के सिर पर भी वह हाथ रखेगा वह उसी समय भस्म हो जाएगा। भोलेनाथ भगवान ने भी उसे यह वरदान दे दिया। वरदान पाने के बाद भस्मासुर घमंड से भर गया। उसने भगवान शिव को ही जलाने की तैयारी कर ली। इससे बचने के लिए भगवान शिव को निरंमंड के देओढांक में स्थित एक गुफा में छिपना पड़ा। कई महीनों तक भगवान शिव को यहां रहना पड़ा। उधर, भगवान विष्‍णु ने भगवान शिव को बचाने और भस्मासुर का खात्मा करने के लिए मोहिनी नाम की एक सुंदर महिला का रूप धारण कर लि

जानिए कैसे पड़ा माता शक्ति का नाम दुर्गा?

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पुरातन काल में दुर्गम नामक दैत्य हुआ। उसने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर सभी वेदों को अपने वश में कर लिया जिससे देवताओं का बल क्षीण हो गया। तब दुर्गम ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। तब देवताओं को देवी भगवती का स्मरण हुआ। देवताओं ने शुंभ-निशुंभ , मधु-कैटभ तथा चण्ड-मुण्ड का वध करने वाली शक्ति का आह्वान किया। देवताओं के आह्वान पर देवी प्रकट हुईं। उन्होंने देवताओं से उन्हें बुलाने का कारण पूछा। सभी देवताओं ने एक स्वर में बताया कि दुर्गम नामक दैत्य ने सभी वेद तथा स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया है तथा हमें अनेक यातनाएं दी हैं। आप उसका वध कर दीजिए। देवताओं की बात सुनकर देवी ने उन्हें दुर्गम का वध करने का आश्वासन दिया। यह बात जब दैत्यों का राजा दुर्गम को पता चली तो उसने देवताओं पर पुन: आक्रमण कर दिया। तब माता भगवती ने देवताओं की रक्षा की तथा दुर्गम की सेना का संहार कर दिया। सेना का संहार होते देख दुर्गम स्वयं युद्ध करने आया। तब माता भगवती ने काली , तारा , छिन्नमस्ता , श्रीविद्या , भुवनेश्वरी , भैरवी , बगला आदि कई सहायक शक्तियों का आह्वान कर उन्हें भी युद्ध करने के लिए प्रेरित किया। भ